Thursday, September 29, 2011

त्रिवेणी









एक बात को कहीं हमने कह कर खो दिया ,

एक ज़हन में रही और फ़साना बनती गयी !


चुप्पियाँ सिखाती हैं बातों का मोल रखना !















वंदना

Tuesday, September 27, 2011

एक आवारा परिंदे कि उड़ान होता गया




एक आवारा परिंदे कि उड़ान होता गया ,
दिल को हवा लगी आसमान होता गया.. 

कितने मंजर छूट गए उस बेख्याली में,
मैं खुद से भी कैसा अनजान होता गया..

ख़्वाब न हकीकत वो कुछ भी तो न था ,
महज़ इक  भरम का गुमान होता गया.. 

सुधियों को सिखाकर एक गूंगी परिभाषा , 
इक तस्सवुर दिल का महमान होता गया.. 

वरक दर वरक*   दुआएं  बहुत सी पढीं, 
हर इबादत पे दिल ये बेईमान होता गया..

जब्त कि रगों में  इज़्तराब*  ठहर  गया , 
इश्क एक पागल कि मुस्कान होता गया.. 

रफाकत का हमने भी दामन नही छोड़ा , 
खुदगर्ज कोई मुझमे पशेमान* होता गया..

प्यासे समंदर कि सब मछलियां बींद डाली,
जाता हुआ मौसम तीर ए कमान होता गया !!



- वंदना 

वरक दर वरक = पन्ने दर पन्ने 
इज़्तराब = बेचैनी / तड़प 
पशेमान = शर्मिंदा 


Sunday, September 25, 2011

गिरहें





कुछ गिरहें जिनमे  
बंधी हुई  हूँ  मैं 
जो जकड़े हुए हैं 
 मेरे वजूद को 

जिन्हें ...जब कभी 
धीरे धीरे सुलझाने 
कि कोशिस करती हूँ 
बिखरने लगती हूँ 

मेरे साथ बिखरता है 
....मेरा विश्वास 
मेरे साथ बिखरती है 
.....मेरी आस्था, 
बिखरने लगता है 
मेरा नजरिया, 
बिखरने लगती है 
......मेरी सोच ,
बिखरने लगता है 
-- मेरा वजूद   !

चाहती हूँ ...जिन्दगी भर 
ये गिरह मुझे ...
यूँ ही बांधकर रखे 
मैं कभी बिखरने न पाऊं 

क्योकि गिरहों के
 इस बंधन में ही मैंने 
एक आज़ाद रूह ..
महसूस कि है  !!

- वंदना 

Friday, September 23, 2011

इल्तिजा ....




हो सकता है मेरा अनुभव गलत हो 
या नजरिया अस्थिर हो क्योकि
मेरी  सोच में गांठे पड़ने लगी हैं आजकल ..
जिन्हें सुलझाने कि जद्दोजहद में 
मैं अक्सर उलझ जाती हूँ ....
सुना है कुछ चीजों कि मिठास 
वक्त के साथ बढ़ जाती है 
और कुछ चीजों कि कम होती जाती है ! 

कई बार हम इसे प्रकृति का 
नियम कहकर खुद को बहला लेते हैं 
लेकिन कुछ नियम प्रक्रति ने नहीं 
हमारे  स्वार्थ ने बनाये हैं अपने बचाव में 

जिन्दगी के काफिले में लोग 
कभी मिलते हैं  कभी बिछड़ते हैं 
कभी सीख बनकर कभी सहारा बनकर 
कभी खुशी बनकर कभी गम का किनारा बनकर 
कभी सबक बनकर कभी मिठास बनकर 

कुछ लोग झोंके  कि तरह गुजर जाते हैं 
मगर कुछ धूप और चांदनी कि तरह ठहर जाते हैं 
जो जिन्दगी कि आदतें भी हैं और जरूरत भी !

मेरे लिए हर वो रिश्ता 
जो मेरी जिन्दगी कि कमाई है ..
जिनकी खुशी मेरी मुस्कानों में सजती है 
जिनके गम मेरी दुआओं में बसते हैं 
जिनके साथ मैंने मुस्कुराहट ,
अपनी उदासियाँ बाटी हैं

मैं चाहती हूँ वो जिन्दगी में
धूप , चांदनी और इस आती जाती
हवा कि तरह हमेशा साथ रहें ..
जिनकी मिठास वक्त के साथ कभी कम न हो 

मगर डर लगता है  कभी कभी 
जब जिन्दगी का कोई पल 
अकेले होकर मिलता है मुझसे 
तो मैं फैंसला नहीं कर पाती 
जिन्दगी का कैनवास कितना 
रंगीन है और कितना फीका ! 

बुरा भी कभी  कुछ कहा तो नही है 
मैल इस दिल में कोई रहा तो नही है 
फिर भी ..माफ़ी  उस हर बात के लिए 
जिससे जाने अनजाने दिल दुखा हो किसी का !!


-- वंदना 

Monday, September 19, 2011

ग़ज़ल





कभी पत्थर बनाती है   कभी लोहा बनाती है 
गर्द ए एहसास कभी उसको खोया* बनाती है 

कुछ खोया है   या पाया है    उसे मालूम नहीं   
अपने वजूद को आसूद* मगर गोया* बनाती है 

सबब मालूम है तस्वीरों कि रफाकत* का मगर 
वो पागल फिर दुआओं में एक चहरा बनाती है 

बेगानी खुशी मुस्कान में,दुआ में दर्द पराये हैं 
वो जिंदगी से आजकल कैसा रिश्ता बनाती है 

देखा है  जिंदगी के  मौसमों  का  बदल  जाना 
वो हर सफ़हे* को यादों का इक आईना बनाती है 

हँसे  तो आँसू हो जाये,   रोये  तो मुस्कान बने 
वो हर जज्बात को जादू का खिलौना बनाती है 

हम इस नादानी को  तजुर्बा ए इश्क  कहते हैं 
वो हर जख्म को  इबादत  का फलसफा बनाती हैं 

- वंदना 




खोया = राख या बरूदा
आसूद = संपन्न 
गोया = जैसे / माना 
रफाकत = साथ 
सफहे = पन्ने 




Wednesday, September 14, 2011

गीत - जिंदगी ए जिंदगी






हँसना सिखाती है ..रोना सिखाती है 

मरती हुई दुनिया में जीना सिखाती है 

जिंदगी ए जिंदगी ...तू कितना सताती है ...


जीने के लिए नही मिलते  जीने के बहाने भी 

कभी रह जाते हैं अधूरे ,   जीवन के फ़साने ही 

साँसे बख्शती है तो धड़कने चुराती है 

जिंदगी ए जिंदगी , तू कितना सताती है 

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आँखों में पलते ख़्वाब पानी के बुलबुलें हैं 

है मंजिल याद मगर ...जैसे रस्ता  भूले हैं 

देकर अँधेरे  तू ....जलना सिखाती है ..

जिंदगी ए जिंदगी , तू कितना सताती है 

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हँसना सिखाती है ..रोना सिखाती है 

मरती हुई दुनिया में जीना सिखाती है 

जिंदगी ए जिंदगी ...तू कितना सताती है  |


- वंदना 


Monday, September 12, 2011

ग़ज़ल




हमको जब भी  तुझपे  प्यार आया
बे अदब  बे वजह बे शुमार आया ..

महक उठे दिल के तयखाने तमाम
तसव्वुर का जब भी खुमार आया..

रुख बदलने लगी जिंदगी कि हवा
रातों कि चांदनी में निखार आया..

प्यास आँखों कि आंसू में ढली ऐसे
कैद दरिया में जैसे उतार आया ..

गूंजती है सदाओं से गली उसकी
मैं बेख्याली में  उसे   पुकार आया..
- वंदना 

Saturday, September 10, 2011

ख़ामोशी !


   सुनो !  तुम्हे कितनी बार समझाया है ....ये खामोशियों के पुल मत बाँधा करो !  किनारे तरस जाते हैं एक दुसरे  कि आवाज़ सुनने को ....और ज़हन में उठती इन लहरों का क्या कसूर है  ?   जिन्हें बाँध  दिया तुमने ..इस पुल के खम्बो से ..

      बहादुरी नहीं होती   मौन हो  जाना  ..किसी जज्बात कर क़त्ल कर देना ....एहसासों को तिल तिल कर तडपाना... अपनी ही तमाम बातें काटते रहना ...अपनी ही घुटन को उल्टा लटकने पर मजबूर कर देना !   आईने को उलटकर देखा है कभी सारे कोण उलट पलट कर देखना अक्श नहीं बदलता .....वही दिखता है जो है और जैसा बनाया गया है |  एक  कायरता है यह सब  .....खुद में कैद होकर जीना जो खोकला कर देगी तुमको ! 

     जिस बात कि कोई जुबाँ ही नहीं उसकी सुनवाई कैसी .....जिन्होंने सौंपी है ये खामोशियाँ ..उन्ही कि गूँज एक दिन बहरा भी बना देगी ...और तब खुद को भी नहीं सुन सकोगी !

माना ढीठ होती हैं दिल कि लगी ..ढीठ होती है प्रेम कि भावनाये...मगर जिंदगी इन सब से ज्यादा ढीठ है ...जिसे पूर्ण रूप से जीने के लिए इसके हर रंग को अपनाना जरूरी  है किसी एक ही रंग में सिमटकर रह जाना नहीं ! 

कोई कडवाहट या तो थूकी जा सकती है.. या निगली जा सकती है , मूह में रहेगी तो स्वाद ही बिगड़ जायेगा !.

Friday, September 9, 2011

ग़ज़ल ..!





माना जीने के सलीके हमको आते नही हैं   
मगर तजुर्बे जिंदगी के क्या सिखाते नही हैं 

जिंदगी हमको कबूल हुए ये इल्जाम सारे 
मगर हम गलतियां कभी दोहराते नही हैं 

ये चखोर मिज़ाजी का हुनर हमें भी दीजिये 
हमसे तो दिल के पहरन बदले जाते नहीं हैं 

इन साखों पर  ये  बसेरा   रोज़ लगता है 
कुछ परिंदे थे जो  अब नजर आते नहीं हैं 

तुम कैसे यारों  पत्थर को खुदा मान लेते हो 
लोग इंसानों  से भी रिश्ता निभाते नहीं हैं 

पढ़े न जा सकें   ये बात और है  ए दोस्त 
सफ़हे किताब ए जिंदगी से निकाले जाते नही हैं 

- वंदना 

Thursday, September 8, 2011

त्रिवेणी




बेबाकियों ने जिंदगी से एक दिन यूं ही पूछ लिया 
किसी की ख़ुशी क्यूं अपनी है .किसी के गम क्यूं अपने है 

जिंदगी बोली अब ये मत पूछना इन पर हक़ अपने क्यूं नहीं !


वंदना 

Wednesday, September 7, 2011

त्रिवेणी




कुछ परिंदे दूर कहीं से  इस पेड़ पर रोज आते हैं 
हैरत कि बात है इस पेड़ पर कोई फल भी नहीं 

शायद बेनाम रिश्ते इन्ही डालियों पर बसते हैं !

- वंदना 

Sunday, September 4, 2011

मौन होते हुए रिश्ते !



खतरनाक होती हैं 
पसरती हुई खामोसी 
खतरनाक होते हैं 
बातों के सिमटते दायरे 

खतरनाक हैं शब्दों कि 
बदलती हुई परिभाषाएं 
जज्बातों की 
खोती हुई गरिमा 

खतरनाक है 
टूटते हुए भरम 
भावनाओं के उधड़ते जाल 

खतरनाक होते हैं 
मौन होते हुए रिश्ते !


तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...