Saturday, September 10, 2011

ख़ामोशी !


   सुनो !  तुम्हे कितनी बार समझाया है ....ये खामोशियों के पुल मत बाँधा करो !  किनारे तरस जाते हैं एक दुसरे  कि आवाज़ सुनने को ....और ज़हन में उठती इन लहरों का क्या कसूर है  ?   जिन्हें बाँध  दिया तुमने ..इस पुल के खम्बो से ..

      बहादुरी नहीं होती   मौन हो  जाना  ..किसी जज्बात कर क़त्ल कर देना ....एहसासों को तिल तिल कर तडपाना... अपनी ही तमाम बातें काटते रहना ...अपनी ही घुटन को उल्टा लटकने पर मजबूर कर देना !   आईने को उलटकर देखा है कभी सारे कोण उलट पलट कर देखना अक्श नहीं बदलता .....वही दिखता है जो है और जैसा बनाया गया है |  एक  कायरता है यह सब  .....खुद में कैद होकर जीना जो खोकला कर देगी तुमको ! 

     जिस बात कि कोई जुबाँ ही नहीं उसकी सुनवाई कैसी .....जिन्होंने सौंपी है ये खामोशियाँ ..उन्ही कि गूँज एक दिन बहरा भी बना देगी ...और तब खुद को भी नहीं सुन सकोगी !

माना ढीठ होती हैं दिल कि लगी ..ढीठ होती है प्रेम कि भावनाये...मगर जिंदगी इन सब से ज्यादा ढीठ है ...जिसे पूर्ण रूप से जीने के लिए इसके हर रंग को अपनाना जरूरी  है किसी एक ही रंग में सिमटकर रह जाना नहीं ! 

कोई कडवाहट या तो थूकी जा सकती है.. या निगली जा सकती है , मूह में रहेगी तो स्वाद ही बिगड़ जायेगा !.

9 comments:

  1. कडवाहट मुह में रहेगी तो स्वाद ही बिगाड़ेगी...
    बहुत सार्थक चिंतन....
    सादर...

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  2. सटीक चिन्तन....

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  3. ख़ामोशी भी बोलती है... सुन्दर रचना....

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  4. kafi dino ke baad aaj aapki sabhi rachnayein padhi. Ek maturity dikhti hai. Prabhshadi dhang se baat rakh pati hain....Bahut achchha laga padh kar.

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  5. खामोश चिन्तन.सटीक रचना.....सुन्दर....

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...