वो अल्हड़ता
वो बेपरवाही
वो अपने हक़ में
जी लेने कि चाहत
उसे आवारा करार
दे गयी
जो न हो सका गंवारा
उसके पिंजर गढ़ने वालो को
एक लक्ष्मण रेखा को
उसकी मांग में खींचा गया
उसको ख़ुशी ख़ुशी कबूल हुए
उसकी हदें तय करते दायरे
न कबूल हो सका मगर
खुदा को ,क्योकि
हाथो कि लकीरों में
दुखों के कर्ज बाकी थे
दहाड़े मार के चीखीं
वो अपने हिस्से के
पत्थरो पर कांच कि
चूड़ियाँ तोड़ते हुए
अब उसके पास
न चीखें बची है न शोर
न बेड़िया हैं ,न रेखाएं
साँसों कि किश्तें
भरते रहने के लिए
उसका पागल हो जाना ही जरूरी था !
भरते रहने के लिए
उसका पागल हो जाना ही जरूरी था !
- वंदना