Sunday, August 29, 2010

बज्म ए एहसास




इन इठलाती हवाओ से कोई तो आगाज मिले
लम्हे कुछ गुनगुना रहें है, आलम से कोई साज मिले


परिंदों को देख कर आज ये ख्याल आ गया
जिंदगी ! जाने कब इन साँसों को परवाज मिले ?

ये अनजान शहर है कोई पहचानता तक नहीं तुमको
क्यू बार बार पलटते हो ..किधर से आवाज मिले ?

संजीदा लोगो में बैठकर बेबात मुस्कुराते हो
फिर कैसे यहाँ किसी से तुम्हारा मिजाज़ मिले ?

तन्हाई ..बज्म ए एहसास कि मेहमान हुई जाती है
आज फिर इन धडकनों को शायद दिल का कोई राज़ मिले !

vandana
8/29/`10

Wednesday, August 18, 2010

Ghazal





जिन्दगी के इल्म पर एतबार नहीं होता
मगर आईने में देखकर इनकार नहीं होता

हर एक जख्म को मरहम कि तलाश होती है
किसी को कभी किसी से प्यार नहीं होता..

दिल कि तन्हाई बज्म ए एहसास तलाशती है
यहाँ कोई किसी का तलबगार नहीं होता..

डूब भी जाया करते हैं अक्सर लहरों से खेलने वाले
मगर साहिल पे बैठ कर तो दरिया पार नहीं होता..

आईने कि क्या मजाल मुझे कोई इल्जाम दे
अपनी ही नजर में अगर मैं गुनहगार नहीं होता..

Monday, August 16, 2010

सूरज.




आज सांझ सूरज...
कुछ अलसाया हुआ सा,
शफक पर
ठहरा रहा कुछ देर ..
जैसे .. रात का अभी
कुछ श्रंगार बाकी था !!


Thursday, August 12, 2010

ठहर जरा ओ जाते पंछी




ठहर जरा ओ जाते पंछी ..एक बात जरा सुनता जा
करती हूँ गुजारिश तुझसे ..फ़रियाद जरा सुनता जा
.............................................................
मेरे बचपन के गलियारों कि कुछ खैर खबर तू ला दे
ले जा तू संदेसा मेरा ..बिछड़े लम्हों कि सैर करा दे
बचपन कि सब सखिया मुझको याद करती होंगी
वो भी मेरी तरह किसी पंछी से फरियाद करती होंगी






वो मेले सखियों के
वो झूले सावन के
वो रातें ख्वाबो कि
खेल उस बचपन के ...
बाबा कि सूनी बगिया के झूले मुझे बुलाते होंगे
दूर बाग़ में वो पंछी सारे अब भी गातें होंगे
आँगन में चिड़ियों का बसेरा अब भी लगता होगा
रातो में वो चाँद अकेला अब भी जगता होगा








जब जब शाम को नाचे 'मोरा
कोयल राग सुनती होगी ..
कहीं दूर आती हवाएं अब भी
मेरे नाम का पैगाम लाती होंगी
खेतो कि वो मुंडेरिया ..
मेरा रास्ता निहारती होंगी
वो कच्ची सड़क मेरे गाँव कि
मेरे कदमो को अब भी पहचानती होंगी






सुन रे पंछी ! है एक सूनी अटरिया ..तू वहाँ मत जाना
मेरे बचपन के अरमानो का उड़नखटोला
टूटकर बिखरा पड़ा होगा ! ....


ठहर जरा ओ जाते पंछी ..एक बात जरा सुनता जा
करती हूँ गुजारिश तुझसे ..फ़रियाद जरा सुनता जा !!
















Thursday, August 5, 2010

याद तुम्हारी



एक आहट ........जैसे
हवा में घुल के.....
हलके फुल्के से लिबास में
सहमी सी ....घबराई सी
थोड़ी सी शरमाई सी
करती है होले से दस्तक
दिल के दरवाजे पर जैसे
कुछ ऐसे ही आया करती है
अक्सर याद तुम्हारी !





मेरे केशुओ से
उलझकर
हवा का झोंका ....
जब गिरता है मूह के बल
घबराकर उठ भागता है ,
और तुम जैसे ..दूर खड़े
खिलखिलाकर हंस पड़ते हो..
हँसता देखकर तुमको
उदासियाँ मुस्कुरा उठती हो जैसे

कुछ ऐसे ही आया करती है
अक्सर याद तुम्हारी !






मेरी सांसे जब
धडकनों कि ताल पे
कदमताल करती हुई ..

दिल को मचलने का
अदब सिखाती हैं
एक बेचैन मीठी सी धुन पर
नाचते हैं एहसास ..छेड़कर
मन कि वीणा के तार जैस

कुछ ऐसे ही आया करती है
अक्सर याद तुम्हारी ..!




सावन कि एक
सांवरी सी सांझ में
जैसे नम साखो पर
कोई भीगा हुआ मोर
अपने पर फैलाकर
झाड दे सारा पानी ...
और सब पात
सरसरा उठते हो जैसे
.
कुछ ऐसे ही आया करती हैं
अक्सर याद तुम्हारी !






नन्ही नन्ही बूंदे
हवा संग अठखेलिया करती
झूले कि उड़ान पर
लहराती चुनर को
भिगो जाती है जब ..
और लाज ..तुम्हारे
ख्यालो से झुंझलाई हुई
मेरे भीगे हुए तन से..
सुधियों का पता पूछती हो जैसे..

कुछ ऐसे ही आया करती है
अक्सर याद तुम्हारी.. !


जब लम्हों कि कसौटी को
जीतने कि कशमकश में
एक आश को टूटकर भिखरता
देख , दिल झुंझलाहट से भर जाये
आरजू छटपटा उठें ,
हारी हुई एक उम्मीद. .
.शर्मिंदगी के घूँट भरने लगे
और बे लाज सी ..
आँखों से बरसती हुई
पीर को सोखती है
जहन कि रेतीली जमीन..

कुछ ऐसे ही आया करती है
अक्सर याद तुम्हारी !








जब वक्त कि
मुंडेर
पर खड़े !
तुम अलविदा कहते हुए
अपना हाथ हिलाते हो,
और मैं! उन लम्हों को
समेटने कि कोशिश में..
जिन्हें जागीर समझा था कभी...
बिखर जाती हूँ ...एक टूटे
मोतिया हार कि तरह
एक टूटते से भ्रम के साथ!

कुछ ऐसे ही आया करती है
अक्सर याद तुम्हारी.... !!







Monday, August 2, 2010

Ghazal




ले चलो अपनी पलकों कि सरहद के उस पार,
इस झील में हाथ पकड़ के उतारो मुझे..

बसाकर आँखों में अपनी रोशन कर दो मेरी दुनिया
जिन्दगी के इन घने अंधेरो से उबारो मुझे ..

या तो जिन्दगी बख्श दो मेरे हर जज्बात को,
या आरजू न बाकी रहे इस मौत मारो मुझे..

हर लम्हा सताते हैं ये आगाज अजनबी से,
है तमन्ना, एक बार तो नाम लेकर पुकारो मुझे .

खिलौना बना लो या कोई मुक्कमल मूरत बना लो ,
मैं गर्द* ए एहसास हूँ अपने सांचे में संवारो मुझे

बेमुकाम से सफ़र में चलता ही जा रहा हूँ मैं
तुम साथ दो तो मिल जाएँ मंजिले हजारो मुझे

गर्द*= मिट्टी

vandana singh
1-8- 2010

तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...