Monday, April 13, 2009

परिचय

बुजुर्ग लायें है दिलो के दरिया से मोह्हबत की कश्ती निकालकर, हम भी मल्लाह उसी सिलसिले के है

तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...