Friday, February 26, 2010


सितारों कि इस महफ़िल में चाँद तन्हा सा क्यूं है
खामोश है लेकिन इसके होठो पर ये शिकवा सा क्यूं है

तेरे ही दम से हैं ये आसमां कि रोनके.. मैं हैरान हूँ
सबकी आँखों का नूर आज खुद से खफा सा क्यूं है

कुछ पाकर के है खोना कुछ खोकर के है पाना
कोई समझाए जरा जिन्दगी एक जुआ सा क्यूं है

उन आँखों कि वो मस्ती मदहोश कर गयीं थी
आईना पूछ बैठा इन आँखों में ये नशा सा क्यूं है

कुछ जल जल कर बुझता रहा सीने में मेरे
कोई क्या जाने के इन आँखों में ये धुंआ सा क्यूं है

वो एक सख्स जो जुदा सा है ज़माने भर में
मेरा कोई नहीं .....फिर भी खुदा सा क्यूं है..

Thursday, February 25, 2010


चाहतो का हम भी अगर अदब जान जाते
अपनी वफाओ का कुछ सबब जान जाते ..

ना रोते यूँ बेवजह.. ना बेकरार होते
दस्तूर ए मोहब्बत को गर हम जान जाते ..

निगाह रखते हम भी ..रवानी पे अपनी
रुख हवाओं का हम अगर पहचान जाते..

बेकसूरी में हमें ये सजा शायद ना मिलती
जुर्म करने कि हम अगर अदा जान जाते..

तुझसे जुस्तजू कोई हम हरगिज ना करते
तुझे ए शितमगर जो हम पहचान जाते..

Saturday, February 20, 2010

कोई अनदेखा अनजाना अक्सर ख्वाबो में आ जाता है.






बेख्याली में एक खूबसूरत सा ख्याल बनके आ जाता है
कोई अनदेखा अनजाना अक्सर ख्वाबो में आ जाता है..

मैं जाने क्यूं आईने में खुद से बिछड़ जाया करती हूँ
वो मेरी ....उलझी हुई.... लटें ........सुलझा जाता है

कभी मिलता है ..सपनो में किसी रम्ज -शिनाश कि तरह .
जाने..... किस तरह ..बिलखते दिल को... सैलाह जाता है

टूटता है जब जब कोई तारा फलक के जहाँ में
वो इबादत कि तरह दुआओं में आ जाता है ..

पलकों पे झिलमिलाता है यूँ तो आसमां के सितारों कि तरह ..
अक्सर तन्हा रातों में ..चाँद बनके आ जाता है ...

मेरी साँसों में भी बस्ता है कोई एहसास ए तरन्नुम कि तरह .
मुझे यकीं तब होता है जब गीत बनके वो लबो पे आ जाता है ..

महमां है... मेरी ..बज्म ए तन्हाई का....... वो
पाकर मुझे तन्हा पलकों में अश्क बनके छलक जाता है

यकीं मानों कोशिशे लाख किया करती हूँ मैं छुपाने कि
मगर ए लेखनी तेरे दम से हर राज जुबाँ पे आ जाता है ...

हाँ इतनी सी शरारत मैं ए गजल तेरे साथ कर ही लिया करती हूँ
गढ़ती हूँ अफसाना सब्दो से खेलके कुछ है के जो दिल में रह जाता है..

Wednesday, February 17, 2010

"कुछ आशार "..जो गजल नहीं हो पाए

वो पत्थर फैंकते रहे एक प्यासे समंदर में
ये जरा नहीं सोचा लहरों को भी चोट आती है ...

उनकी तड़प का अंदाजा किनारे ही जानते है .
जब बेताब सी उठती है चोट खाकर बेबस लोट जाती है ..

शायद इसी बात का सागर को गुरूर है गहराई पे अपनी
अपना वजूद भूलकर गंगा भी उसकी .आगोश में सिमट कर ठहर जाती है

जिससे बादल ने उधार ली है नमी अपनी अधरों कि
उसी सागर कि ..ये नदिया प्यास बुझाती है.. .

ऐ समंदर तेरी हस्ती मुझे मेरी गागर से कहीं छोटी लगी
जिसकी खार किसी प्यासे के काम ना आती है .
..
आईने ने समझाया था कल मुझे .आँखों के समंदर को नदी हो जाने दो ..
आंसूओ कि खार से किसी कि प्यास नहीं बुझती ..
बल्कि डूबकर एक प्यासे कि जान जाती है

Wednesday, February 10, 2010

गजल




अजनबी एहसासों को भी दिल में जगह देनी पड़ती है ..
गजल को .....तुकबंदी से...... सवांरा नहीं जाता .

ये अल्ल्हड़ सी नादाँ लहरें हर बार आकर लोट जाती है
संजीदगी देखिये मूह फेरकर कभी किनारा नहीं जाता

एक रोज देखी थी फलक के चाँद कि तबस्सुम
पलकों के सायें से.. वो...... नजारा नहीं जाता ...

देख बैठे ख्वाबो कि दुनिया हकीकत कि नजरो से
आज तलक इन आँखों से उस चेहरे का लश्कारा नहीं जाता

जिनकी सदाए भी ख़ामोशी ओढ़ पहन कर निकलती है
उन्हें नाम लेकर यूँ ..कभी... पुकारा नहीं जाता ..

ये वो बुलंदी है जहां वापसी कि सीढ़ी नहीं होती
पलकों पे रहने वालो को गिरा ही सकते है ...उतारा नहीं जाता

ए कलम तू सहेली है मेरी ..कुछ तेरे मेरे बीच रहने दे
यूँ हर बात को कागज पर.... उकारा नहीं जाता ..

कभी कोई बात इस दिल कि भी माना करो "वंदु"
यूँ हर बात पर दिल को ......नकारा नहीं जाता ...


Saturday, February 6, 2010

एक कमजोर लम्हा



आज मैं खुद से रूठ जाऊं
तो मुझको मनाये कोई
मैं फूटकर रोना चाहती हूँ
काँधे से अपने लगाये कोई ...
.

ये तन्हाई मुझको
अपनी गिरफ्त में ले बैठी
मुझे ...इस कैद से ....छुडाये कोई .....

मैं आज बिलखूँ..पैर पटक कर
रोते किसी जिद्दी बच्चे कि तरह
मुझे बांहों में लेके .
दिलासों से ही बहलाए कोई ...

खुद को समेट कर बाँधा है
हिम्मत कि एक नाजुक सी डोर से
डर लगता है टूट ना जाये
शायद मुझे समेट ना पाए कोई
.
घेर लेते है जाने क्यूं बेवजह कि उदासियो के घेरे
कोई पूछे आँखों कि नमी का कारन ..
गिरते अश्क जमी से उठाये कोई ...
.
जी करता है आज इन कमजोर लम्हों को
एक बार फिर अपने पागलपन से जीत लूं ...
...
मैं हंस लूं आज किसी पागल कि तरह
मुझे देख कर यूँ ही मुस्कुराये कोई ..

कुछ छोटी कवितायेँ




चाँद ने भेजी है...
सितारों सजी पालकी,
निंदिया भी बांवरी
शरमा के जा बैठी........:)









चांदनी.. मेरे आँचल में..
सब सितारे छुपा गयी ...
आज चाँद
उस महफ़िल में
अकेला
मूह लटकाए बैठा है ...:)




3
इन्तजार में ...
पथराई आँखें,
बोझिल सितारे ..
मांग लायी है ,
अब उसे कहना...
बनके चाँद
मेरी नींदों में ना आयें..

4..
सांसों से लिखे है
कुछ पैगाम मैंने ...
हवा के हर एक
झोंके
पर,
नाम पता कुछ मालूम नहीं
बस इसी उम्मीद पर,
जो पढ़ पाए संदेसा मेरा..
रब ने बख्शी होगी
ये इनायत जरूर किसी एक को...




Wednesday, February 3, 2010

[छोटा मूह बड़ी बात ]





कद्र दुनिया कि नहीं .. वक्त कि किया करो
चाह जिन्दगी कि नहीं.. जीने कि किया करो ..

आईना सच कहता है ..कहना मान कर उसका
कभी खुद से भी नजर तुम मिला लिया करो .
.
यूँ हर कदम पे .हम सफ़र को परखना चाहते हो ..
यकीं है कितना उसपर ?खुद को भी आजमा लिया करो ..

जिन्दगी में सच्चाइयो पर अडिग रहना सीख जाओगे ...
ज़माने कि खोकली रियायतों से टकरा लिया करो ...
...
मोहब्बत कि सही परिभाषा समझ आ जाएगी तुमको
एक पल उनकी आँखों में दुनिया भुलाकर रह लिया करो...

प्यार बांटना दुनिया में कोई मुश्किल का काम नहीं
बस ज़माने कि नफरते हंसकर सह लिया करो ...

अदब से तुम्हे भी मुस्कुराना आ जायेगा...
अपनी तन्हाइयो में कुछ पल उदास रह लिया करो .


यूँ हर छोटी बात पर भगवान् से बिगड़ना छूट जायेगा
सच कहती हूँ ..अपने जी कि बात माँ से कह लिया करो .

हाजरी मदीने कि चोखट पर हर रोज जरूरी नहीं
रोते बच्चे और ..पीड़ित बुजुर्गो के साथ कुछ पल रह लिया करो..
.
वंदना 1/22/2010 .


तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...