अजनबी एहसासों को भी दिल में जगह देनी पड़ती है ..
गजल को .....तुकबंदी से...... सवांरा नहीं जाता .
ये अल्ल्हड़ सी नादाँ लहरें हर बार आकर लोट जाती है
संजीदगी देखिये मूह फेरकर कभी किनारा नहीं जाता
एक रोज देखी थी फलक के चाँद कि तबस्सुम
पलकों के सायें से.. वो...... नजारा नहीं जाता ...
देख बैठे ख्वाबो कि दुनिया हकीकत कि नजरो से
आज तलक इन आँखों से उस चेहरे का लश्कारा नहीं जाता
जिनकी सदाए भी ख़ामोशी ओढ़ पहन कर निकलती है
उन्हें नाम लेकर यूँ ..कभी... पुकारा नहीं जाता ..
ये वो बुलंदी है जहां वापसी कि सीढ़ी नहीं होती
पलकों पे रहने वालो को गिरा ही सकते है ...उतारा नहीं जाता
ए कलम तू सहेली है मेरी ..कुछ तेरे मेरे बीच रहने दे
यूँ हर बात को कागज पर.... उकारा नहीं जाता ..
कभी कोई बात इस दिल कि भी माना करो "वंदु"
यूँ हर बात पर दिल को ......नकारा नहीं जाता ...
Ab kya kahun is par main yaar....itni solid nazm hai ki bas.
ReplyDeleteSaare sher bahut acche hain par ye do to mere fav hain..... :)
ये अल्ल्हड़ सी नादाँ लहरें हर बार आकर लोट जाती है
संजीदगी देखिये मूह फेरकर कभी किनारा नहीं जाता
ये वो बुलंदी है जहां वापसी कि सीढ़ी नहीं होती
पलकों पे रहने वालो को गिरा ही सकते है ...उतारा नहीं जाता
wah "vandu" ji ,
ReplyDeleteए कलम तू सहेली है मेरी ..कुछ तेरे मेरे बीच रहने दे
यूँ हर बात को कागज पर.... उकारा नहीं जाता ..
bahut khoob.
thanks a lot neer..:)
ReplyDeletethanku soo much swapan sir ..:)
एक रोज देखी थी फलक के चाँद कि तबस्सुम
ReplyDeleteपलकों के सायें से.. वो...... नजारा नहीं जाता ...
kya baat hai ... bahut hi lajawaab sher hai ... poori gazal khoobsoorat sheron se bani hai ...
ए कलम तू सहेली है मेरी ..कुछ तेरे मेरे बीच रहने दे
ReplyDeleteयूँ हर बात को कागज पर.... उकारा नहीं जाता ..
bahut khub.
wow...ek ke baad ek post ......bahoot khoob....aise apni kalam ke dhaar badhati raho
ReplyDeleteloved the last verse too much.......superb penning...:)
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