Friday, December 31, 2010

सबको नया साल मुबारक :)



सच हो जाएँ सबके सपने 
जीवन हो खुशहाल मुबारक 
लेकर आये ढेरों खुशियाँ 
मंगलमय हो साल मुबारक

तहे दिल से शुभकामनाएं सभी को 
सच्ची दुआओं का उपहार मुबारक 

जो सिंगल है वो मिन्गल हो जाएँ 
मिले हमें शुभ समाचार मुबारक 
जो लाइफ प्लानिंग कर बैठे हैं 
उनको है एडवांस .."मुबारक" 

आपकी दुआ से अगर रहे सलामत 
मिलते रहेंगे हर साल मुबारक 
स्वस्थ , व्यस्त और मस्त रहो 
रखना अपना ख्याल मुबारक 

तुम सबको नया साल  मुबारक 
हमको हमारा हाल मुबारक :) 

Wednesday, December 29, 2010

मंजिलें छूट गयीं और सबात* आया भी नहीं




जो कबूला भी नहीं ..जुठ्लाया भी नहीं 
जो जताया भी नहीं और छुपाया भी नहीं..

उस प्यार कि कोई ..इन्तहा तो न थी 
वो लबो पे मगर कभी आया भी नहीं.. 

तकती थी शाम ए तन्हाई रास्ता जिसका 
वो आया भी नहीं .हमने बुलाया भी नहीं.. 

मैं ही पागल जाने  किस दर्द में जीता रहा,
उस रहनुमा ने कभी दिल दुखाया भी नही..

मुनासिब तो न था ये कर्ब ऐ हिज्र* लेकिन, 
फुर्सत से कोई लम्हा मगर बिताया भी नहीं 

  टूटते देखें  हैं रोज रातों में ,तारे गगन के,  
माँगकर  दुआ दिल को   बहलाया भी नहीं.. 

अजब  खामोश सा सफर है ये इश्क यारों, 
मंजिलें छूट गयीं और सबात* आया भी नहीं.. 



कर्ब ए हिज्र = जुदाई का गम
सबात = ठहराव

Monday, December 27, 2010

बर्फीली रात



रात में गिरती हुई बर्फ 
मानो आसमा से कोई 
सब सितारे समेटकर 
मुट्ठी में मसलते हुए 
बिखेर रहा हो ,,
कहीं सेंटाक्लोस  तो  नहीं ?

सफ़ेद  चादर ओढ़े 
चांदी सी दमकती हुई रात ...
सीने में ढंडक सी भरती
आँखों में उजाला सा करती 
 मानो चांदनी आज 
CLOSUP टूथ पेस्ट को 
Advertise करने निकली है :)
 
जो भी है मगर ये रात कि सफेदी 
ऐसी महसूस होती है जैसे 
अब तक जिस चाँद के 
नूर को दूर से निहारते थे 
उसकी आगोश में आज 
पनाह मिल गयी हो !! 





Friday, December 24, 2010

एहसास



दिल कि चार दिवारी में 
कुछ एहसास पाले थे 
यूँ ही ...आवारा से , 
सोचा भी कहाँ था
 जानवर ही हो जायेंगे ..
मुझे जिन्दा चबाने को आतुर !

एहसासों के गले में बंधी  
एक नाजुक सी जंजीर,
 बेलगाम देख  जिसे 
मैं ,जब जोर से खींच देती हूँ 
तो रूह छिल जाती है मेरी  ,
उन एहसासों का भी 
दम तो घुट ही जाता होगा ..

सोचती हूँ किसी दिन 
एक झटके में काम ही खत्म कर दूं 
पर ख्याल आता है फिर 
अपनी बेबसी का ..

नाजुक ड़ोर है 
गर झटके में टूट ही  गयी 
तो मुझे कौन बचाएगा ?

वन्दना

Saturday, December 18, 2010

त्रिवेणियाँ



  1. 1.




ये तो   कोई  बात नहीं ..
कुछ बेसबब बेबात नहीं , 


खैर छोडो कोई बात नहीं !


2.

गर डूब गए होते तो पार ही थे.. 
न डूबते तो फिर  इस पार ही थे ,

हमें तो डूबने कि कशमकश ले डूबी !


3.


जमीं को जब तर कर देतीं हैं 

बड़ी ही मुश्किल कर देती हैं

कुछ बे मौसम कि बरसातें ..

4.




एक सीले सफ़हे पर बिखरे हुए से कुछ लम्हे.. 
मूक लफ्जों से गुंथी एक टूटी हुई आखर माला, 

ये सब समेटूं सकूँ तो शायद कोई नज्म हो !

5




बड़ी अजीब हैं  ये   राह ए जिंदगी.. 
तुम्हे   आकाश चहिये   मुझे जमीं, 

मंजिले   जुदा होकर भी   जुदा नहीं !




6.


मेरी दहलती हुई जमीं ..
गिरती संभालती साँसे ,
 

तुम ठीक तो हो ???




7.



नजरिये का झूठ ,दिल के वहम ,ये एक तरफ़ा तलब 
मुझे   नहीं मालूम   मोहब्बत   किसको कहते हैं ,

मगर   खुदखुशी    तो शायद इसी को कहते हैं !




Wednesday, December 15, 2010

ग़ज़ल





मुसव्विर* हूँ  मैं ख्वाबो  कि तस्वीर  बनाती हूँ 
इस हुनर ए रायेगाँ* पर   मुझे गुरूर बहुत हैं..

समंदर ,झील ,दरिया ...क्या क्या न कहूँ,
बात इतनी है के उन आँखों में नूर* बहुत है.. 

बक्शी है   खुदा ने   गजब जादूगरी उसको,
इसी आसूदगी* में शायद वो मगरूर बहुत है ..
.
उसकी जुल्फों में उलझकर बहकते हैं झोंके, 
हम तो समझे थे हवाओ में सुरूर* बहुत है.. 

बैठकर यादों के सायें हंसती रही कुछ देर, 
लगा के टूटकर कुछ कहीं चूर चूर* बहुत है.. 

मेरा ही राजकुमार   मुझे   मिलके खो गया,
उसकी खातिर तो    दुनिया में    हूर* बहुत हैं.. 

कू ए जुनूँ* है   इश्क, थक जाऊं   भला कैसे,  
कैसा सबात*   अभी तो अदम*   दूर बहुत है.. 

 है मुमकिन शिकस्त ए दिल* आशना* थे हम,
 हमारे जब्त से खजल* अब ये    नासूर* बहुत है..  

वो परिंदा    मेरी मुंडेर से    बड़ी हैरत* में उड़ा,
कहीं दूर चलूँ   यहाँ   पिंजर ए दस्तूर* बहुत है..

मोला मैं बसर करता रहूँ पंछी बनके हर जनम,
इंसानों कि बस्ती में तो हर कोई मजबूर बहुत है..


"वन्दना "
मुसव्विर*= चित्रकार 
रायेगाँ=  useless work 
noor =  beauty 
आसूदगी  = संपन्नता
सुरूर = नशा 
चूर चूर =  टूटकर बिखरा हुआ   
हूर =  परी 
कू ए जुनूँ*= जूनून कि गली 
सबात =  ठहराव 
अदम =  अंत , शून्य लोक 
शिकस्त ए दिल*  = दिल कि हार 
आशना   =  मालूम होना 
खज़ल=   शर्मिंदा 
नासूर =  जख्म 
हैरत =  हैरानी 

तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...