Wednesday, December 15, 2010

ग़ज़ल





मुसव्विर* हूँ  मैं ख्वाबो  कि तस्वीर  बनाती हूँ 
इस हुनर ए रायेगाँ* पर   मुझे गुरूर बहुत हैं..

समंदर ,झील ,दरिया ...क्या क्या न कहूँ,
बात इतनी है के उन आँखों में नूर* बहुत है.. 

बक्शी है   खुदा ने   गजब जादूगरी उसको,
इसी आसूदगी* में शायद वो मगरूर बहुत है ..
.
उसकी जुल्फों में उलझकर बहकते हैं झोंके, 
हम तो समझे थे हवाओ में सुरूर* बहुत है.. 

बैठकर यादों के सायें हंसती रही कुछ देर, 
लगा के टूटकर कुछ कहीं चूर चूर* बहुत है.. 

मेरा ही राजकुमार   मुझे   मिलके खो गया,
उसकी खातिर तो    दुनिया में    हूर* बहुत हैं.. 

कू ए जुनूँ* है   इश्क, थक जाऊं   भला कैसे,  
कैसा सबात*   अभी तो अदम*   दूर बहुत है.. 

 है मुमकिन शिकस्त ए दिल* आशना* थे हम,
 हमारे जब्त से खजल* अब ये    नासूर* बहुत है..  

वो परिंदा    मेरी मुंडेर से    बड़ी हैरत* में उड़ा,
कहीं दूर चलूँ   यहाँ   पिंजर ए दस्तूर* बहुत है..

मोला मैं बसर करता रहूँ पंछी बनके हर जनम,
इंसानों कि बस्ती में तो हर कोई मजबूर बहुत है..


"वन्दना "
मुसव्विर*= चित्रकार 
रायेगाँ=  useless work 
noor =  beauty 
आसूदगी  = संपन्नता
सुरूर = नशा 
चूर चूर =  टूटकर बिखरा हुआ   
हूर =  परी 
कू ए जुनूँ*= जूनून कि गली 
सबात =  ठहराव 
अदम =  अंत , शून्य लोक 
शिकस्त ए दिल*  = दिल कि हार 
आशना   =  मालूम होना 
खज़ल=   शर्मिंदा 
नासूर =  जख्म 
हैरत =  हैरानी 

13 comments:

  1. ओह्ह्ह !!!! अब लगता है बिना उर्दू के काम नहीं चलेगा....अपने तो ऊपर से चला गया....सेव का लिया है धीरे धीरे समझ कर पढना पड़ेगा.... शब्दार्थों के लिए धन्यवाद वरना ये तो मिशन इम्पोसिबल हो जाता....

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  2. वन्दना जी क्या खूब लिखती है आप!
    जज्बातों का इतना सुन्दर वर्णन!
    बहुत पसंद आई आपकी यह गज़ल.

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  3. wahhh...!!! behad umdaa har sher...behtareen ghazal... :)

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  4. बहुत सुन्दर गज़ल्।

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  5. बहुत खूबसूरत गज़ल ....शुक्रिया उर्दू के शब्दों का अर्थ देने के लिए ...

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  6. वाह वाह वाह, इसके आगे और क्या कहूँ?
    बहुत सुंदर शायरी है...

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  7. 2.3.4 जानेमन, जानेजां टाइप हैं ६ भी कमाल है ८ और १० में हमारा ही जिक्र है

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  8. वाह बहुत खूब अच्छी रचना ये आपने अच्छा किया उर्दू के शब्दों का अर्थ भी लिख दिया

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  9. what a vocab yaara.....hamesha ki tarah bauhat acchi lagi esp the last couplet!!! :)

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  10. बहुत खूबसूरत शेर हैं ... लाजवाब ग़ज़ल कही है .. और अंतिम वाला शेर तो दिल में उतर गया ..

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  11. वंदना जी,

    वाह...वाह.....बेहतरीन कलाम है....उर्दू ग़ज़ल की सारी खूबसूरती समेटे है ये पोस्ट.....बहुत ही उम्दा.......मेरी बधाई आपको....

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  12. AnonymousMay 03, 2011

    क्या बात है वंदना जी

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...