Saturday, November 28, 2015

आम लड़की

ना मैं रुक्मणि थी 
ना मैं पार्वती 
ना मैं भरोसा चुन सकती थी 
ना ही तपस्या 

राधा हो जाने की 
सारी इच्छाओं को मारकर 
जैसे चुनती है कोई लड़की 
सीता हो जाना 
ठीक उसी तरह 
मैंने भी चुनना चाहा 

मगर मेरा अहम् 
न स्वीकार सका परीक्षाएं 
और उनसे हार जाना तो
बिलकुल भी नही !

मैंने आसान समझा था 
हर रस्म हर रिवाजों से 
बगावत कर
मीरा हो जाना 

मगर मेरे पास नही था 
वो यकीन जो 
जहर के प्यालों को 
अमरित करता 

हर विकल्प को हारकर 
मैं बची हूँ वही आम लड़की 
जिसके हिस्से में दोराहे नही होते 
वह समझोतों की बिसात पर 
अंततः खुद को सिर्फ एक औरत 
साबित कर पाने तक ही समर्पित है 

~ वंदना 




Monday, November 23, 2015

त्रिवेनियाँ




हाँ मैंने  तुम्हे पीछे से आवाज़ दी थी 
ये जानते हुए भी की तुम नही रुकोगे 

मुझे सिर्फ तुम्हारा लौटना आसान करना था !

***

अगर  जिंदगी  फिर  कभी ऐसे दोराहे पर लाये 
जहाँ तुम्हे कोई लाख चाहकर न पुकार पाये 

तो समझना तुम अपने ही सन्नाटें में खो चुके हो !


***

जब रात चांदनी की आगोश में दम तोड़ चुकी होगी 
जब चाँद को गहराते हुए सन्नाटें फाँक चुके होगे 

तुम अपनी खिड़की पर मुझे जागता पाओगे !

***

जब हर टूटन तुम्हारे बदन से रिस चुकी हो
जब पीर का पखेरू कफ़स तोड़  कर जा चुका हो

खुद को एक बार फिर जिन्दा घोषित कर देना !

***


 दिलों के कच्चे यकीन  की छत टपक रही थी 
पलकों के शामियाने में इंतज़ार भीग रहा था 

इश्क का वजूद गल कर गारा हो गया 

***


लड़की के पास चंद सीपियाँ थी  साहिल के रेत से चुनी हुईं
लड़के को उनमे एक भी मोती नही मिला तो लौट गया 

लड़की ने अपनी चाहना सीपियों के साथ रेत  में दफना दी! 




~ वंदना 





तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...