Sunday, June 28, 2009

एक सीख बड़ी मंहगी पड़ गयी .सपनो की बुनियाद बन हकीकत से लड़ गयी

इस कविता प्रेम ने हमें ख़ुद से बतियाना सिखा दिया
दिल के एहसासों को साज बनाना सिखा दिया

एक दर्द छुपाने की कोशिस ने मुस्कुराना सिखा दिया
अपनी कैद फिदरत ने पिंजर (खुद से )से दिल लगाना सिखा दिया

अपनों की रुसवाई ने गैरों से दिल लगाना सिखा दिया
किसी के एहसासों ने तन्हाई में महफिल सजाना सिखा दिया

प्रीत की इस रीत ने मुझे मीरा ,दिल को इकतारा बना दिया
मेरी आँखों को किताब ,और अश्को को अफसाना बना दिया


ऐ कलम तू सहेली है मेरी ..कुछ तो तेरे मेरे बीच ही रहा होता
तूने मेरी आँहों को गैरों के लबो का तराना बना दिया

Friday, June 19, 2009

अजीब सी बात

अक्सर जब ख़ुद पर हस्ती हूँ तो आँख भर आती है ,
लोग मेरे चेहरे की खिलखिलाहट ढूंढते है

जब कभी ख़ुद से शिकायत होती है
तो मेरी पलके सिसकते हुए दिल का साथ नही देती ,
और आँखे बेहया सी खामोश रह जाती है**


जब पापा मेरी नादानियों को हंसकर भुला देते है यूँ ही
तो जाने क्यूं वो छोटी गलतिया भी गुनाह बन जाती है,

अपना ही स्वामित्व सजाये देता है
दिल
के कानून से दफाये लग जाती है,

और जब गुस्से में बडबडाती हुई माँ.. डाट देती है
तो दफाये सब हट जाती है और सजाये माफ़ हो जाती है **


पापा के शख्त प्यार में ..कठोर व्यवहार में..,
अटूट विश्वास में.. ,आशा भरी आंखों के स्नेह अपार में ..

माँ के दुलार में ...सच्चे संस्कार में..,
गुस्से में बहने वाली एक निर्मल सी धार में .. झूठी फटकार में ..

.
...जब जब ख़ुद को परखती हूँ, तो जिन्दगी निखरती जाती है
निखरती जाती है निखरती जाती है **





Saturday, June 13, 2009

कुछ बस यूँ ही

दिल से बह रही थी गजल की उमंगें
मगर मैं समेट नही पा रही थी,

सपनो की झाकिया इन आंखों पर छा रही थी
जैसे जिन्दगी मुझसे छुप छुप कर मुस्कुरा रही थी,

उठ रही थी लहरे दिल में मगर
मैं
एक के बाद एक ख़ुद में दफ़न किए जा रही थी
एक अजीब बेबसी ....घुटन का एहसास दिला रही थी

वो आंसू भी नही थे ..वो दर्द भी नही था
तो क्या आँखों के रास्ते मैं सपने बहा रही थी,

मत बहा इन सपनो को मत इनको यूँ दफ़न कर
मेरी आरजू मुझसे कहे जा रही थी,

खड़ी थी जैसे दोराहे पर ....एक तरफ़ बेमुकाम राह
और दूसरी तरफ़ मंजिल बुला रही थी,

दिल की तड़प को दबाते हुए
मैं
बेबसी के घूँट पिए जा रही थी,
कल्पनाओ के पर काट कर
उनको
सच्चाईयों से वाकिफ किए जा रही थी,

जिन्दगी को दिखाया जब आईना तो पाया
मैं निर्जीव सी जिन्दगी जिए जा रही थी,

मेरी आरजू ...मेरी चाहते ..मेरी खुआइशे ..मेरी तमन्नाये
मुझको अपना कातिल कहे जा रही थी **

Thursday, June 4, 2009

मैं कम कहूँगी.. तुम ज्यादा समझना

१)
शमां से शमां ..जलती आई है ....
वास्ते वास्तो से निकलते है
अकल आयी है ठोकरे खाती
रास्ते रास्तो से निकलते है


२)
परिंदों से सीखा है सबक मैंने उडानों का
रास्ता चुन लिया है अबतो आसमानों का
मंजिल दूर है कितनी इसकी परवाह नही मुझको
जब सफर ही इतना सुहाना है मेरे अरमानो का



३)इस एक दिल के अफ़साने हजार बन जाते है
मैखाना एक होता है ,पैमाने हजार बन जाते है
इश्क करने के लिए चलता नही बहाना कोई
बेवफाई के बहाने हजार बन जाते है



५)खुशी और गम ..आनी जानी है
ये दुनिया राम कहानी है
यही आलम है जिन्दगी का बस
यादे बाकी रह जानी है ....


६)
खुआबो
के झरोखे से कोई आवाज देता है
जिन्दगी में अजनबी से आगाज देता है
कोई तो है.. जो अनजाना है मगर
आईने में ख़ुद से मचलने के मुझे अंदाज देता है


७)
हमारी बेख्याली पर अब इल्जाम लगने लगे है
लोग हमसे अनकहे से सवाल करने लगे है
कोई परख न ले इन आंखों के मंजर
हम पलके उठाने से भी डरने लगे है

तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...