Sunday, July 29, 2012

त्रिवेणी




हर किसी की सुनी सुनाई बचपन की वो एक कहानी  
 सफ़ेद घोड़े पर राजकुंवर और एक वो परियों की रानी ..

हर लड़की का नसीब है उलझना ख्वाबो के भ्रमजाल जाल में !

वंदना 


Wednesday, July 11, 2012

नज्म





वही ख्यालों कि पगडण्डी 
वही गिनती के चार कदम 
मैं कल भी जहाँ थी 
आज भी वहीँ हूँ ...

 बदल चुका है बहुत कुछ 
मेरे इर्द गिर्द ..
गुजरते मौसमों के साथ
 चले गए कुछ 
खूबसूरत से लम्हे 
कभी न वापस आने के लिए 

वक्त तो मानो प्राइमरी से
सीधे पी जी में दाखिल हो गया हो 

मगर बंधा हुआ मेरे हिस्से का वक्त 
मेरी अपनी ही बेड़ियों से 

चाहते हुए भी नही गुजर 
जाने दिया मैंने जिसे 

मालूम है ये ठहराव 
कभी अच्छा नही होता 
घड़े में भरे पानी की तरह 
जैसे खुद ही  घटता जाता  है 
और खोकला कर देता है 
एक दिन आपके वजूद को !

एहसास है मुझे 
कुछ घट रहा है मुझमे 
बदल गए हैं मेरी 
चेतना के मायने 
नही सुन सकती हूँ मैं अब 
मुझमे ही खोयी हुई 
कुछ गुमसुम से आवाजों को

नही बची हैं मेरे पास 
अपने लिए साहस भरी दलीलें,

भरम जाल से खुद को 
निकालते निकालते 
रूह छिल गयी है मेरी ..

 बहुत चुभती है इन एहसासों 
की जरा सी भी किरक.. 

बंद है सब कपाट खिड़किया 
इन रेतीली  पुरवाईयों के लिए 


जरूरी है किसी भी झौके को 
ज़हन की जमीं के इस पार 
उतरने के लिए शीशे को भेदकर 
गुजर जाने का हुनर !


अहम नही है ये मेरा 
न ही गुरूर कोई ....बस 
खुदा का बख्शा एक सुरूर है 
जिसमे बाकी हूँ मैं 
अब भी कहीं...  
अपनी ही परछाइयों में 
कोई मुक्कमल सी मूरत 
बनकर संवरने के लिए !

- वंदना 





तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...