तुमको ख़ामोशी के उसपार से
हर आजमाइश से आगे बढ़कर
हर खलिश को रोंधते हुए
खुद से किये हुए हर एक
समझोते को खत्म कर
बस एक बेपरवाही में ।
खुद में सिमटना संजीदगी है
या फिर एक जकड़न का नाम.
बंधता जाता है इंसान
अपनी ही बुनी हुई गिरहों से ।
समझ नही पा रही हूँ मैं
खुदगर्जी और बेबसी के बीच का
ये फर्क जो मेरे ज़हन में
एक लकीर की तरह
मुक्कमल हो रहा है।
मुक्कमल हो रहा है।
बंट गयी हूँ मैं
अपने ही भीतर कई हिस्सों में।
मुझे इसका अफ़सोस भी है
और इल्म भी, कि
" मजबूत होता है
मोहब्बत की आकर्ति
और आकर्षण में
" मजबूत होता है
मोहब्बत की आकर्ति
और आकर्षण में
बंधा हुआ इंसान
और इस बंधन से टूटकर गिरा हुआ
उतना ही खोकला और बेबस "
~ वंदना