तुमको ख़ामोशी के उसपार से
हर आजमाइश से आगे बढ़कर
हर खलिश को रोंधते हुए
खुद से किये हुए हर एक
समझोते को खत्म कर
बस एक बेपरवाही में ।
खुद में सिमटना संजीदगी है
या फिर एक जकड़न का नाम.
बंधता जाता है इंसान
अपनी ही बुनी हुई गिरहों से ।
समझ नही पा रही हूँ मैं
खुदगर्जी और बेबसी के बीच का
ये फर्क जो मेरे ज़हन में
एक लकीर की तरह
मुक्कमल हो रहा है।
मुक्कमल हो रहा है।
बंट गयी हूँ मैं
अपने ही भीतर कई हिस्सों में।
मुझे इसका अफ़सोस भी है
और इल्म भी, कि
" मजबूत होता है
मोहब्बत की आकर्ति
और आकर्षण में
" मजबूत होता है
मोहब्बत की आकर्ति
और आकर्षण में
बंधा हुआ इंसान
और इस बंधन से टूटकर गिरा हुआ
उतना ही खोकला और बेबस "
~ वंदना
इश्क के बेबसी से बंधन मुक्त होने की चाह दरअसल असल मुहब्बत है ...
ReplyDeleteगहरा एहसास लिए है नज़्म ....
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 07-08-2014 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1698 में दिया गया है
ReplyDeleteआभार
ReplyDeleteखुदगर्जी और बेबसी के बीच का
ये फर्क जो मेरे ज़हन में
एक लकीर की तरह
मुक्कमल हो रहा है। पंक्तिया नहुत भाव पूर्ण |
उम्दा रचना |
बंट गयी हूँ मैं
ReplyDeleteअपने ही भीतर कई हिस्सों में।
मुझे इसका अफ़सोस भी है
और इल्म भी, कि
" मजबूत होता है
मोहब्बत की आकर्ति
और आकर्षण में
बंधा हुआ इंसान
और इस बंधन से टूटकर गिरा हुआ
उतना ही खोकला और बेबस " .....बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
सावन का आगमन !
: महादेव का कोप है या कुछ और ....?
puri kavita bhavpurn....par antim kuch lines dil ko chuu gayi
ReplyDeleteबेहतरीन ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावप्रणव रचना।
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteबेहतरीन ...
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