Sunday, January 31, 2010

ek chhoti si gajal



पलकों के साए में एक नमी सी है ..
जिन्दगी चलती सड़क पर थमी सी है

सुर सरगम ताल सब मेरा मुझसे है
फिर भी गीतों में मेरे एक कमी सी है

मैंने अश्को से निखारे है अपने ख़्वाब सारे
फिर भी एक धुल इन पर जमी सी है

दिल से हो गया है शायद गुनाह कोई
तभी ये धड़कने मेरी इतना सहमी सी है

कभी मचल उठती है कभी तड़प उठती है
खुद अपनी रवानी में बहती ये हवाएं ..हमी सी है....

Thursday, January 28, 2010

बोझिल रात



नींद छोड़ गयी मुझे अकेला इन गूंजते चींखते सन्नाटो में..
चाँद भी मेरी तरह सितारों के जश्न का शोर सुनता रहा
काटी है कुछ इस कदर.. ये बोझिल रात ...के
ख्यालो का काफिया मैं उधेड़ती रही वो बुनता रहा ..

चांदनी बिखेरती रही अपनी तबस्सुम से ओस के मोती..
चाँद सितारों से नजर चुराकर लबो से एक एक चुनता रहा....
यादों के आलम ...एक गम कि पोटली मेरे सिराहने छोड़ गए
एक कठोर सा हिम... मेरी आँखों में ...पिघलता रहा ..

कुछ अजनबी सदायें ...ख़ामोशी से डराती रही
एक आगाज रह रह कर के दिल पे दस्तक करता रहा
एक ख़्वाब... कुछ सहमा ..कुछ घबराया सा ...
मेरी चंचल घुंघराली लटो कि तरह पलकों से आके उलझता रहा..

शाम मैं देर तक तनहाई संग बैठी ...किनारे कि नमी में
कुछ बेनाम पैगाम लिखती रही....... रेत पढता रहा
धुल गए सब अफ़साने और सबब किनारों ने बताया ...
के रात भर समंदर लहरों के संग ठिठोली करता रहा ...

बुझ गए जब गाँव के सब दिए .....गुनगुनाती हवाओ में
एक जुगनूँ ...तीरगी संग आँख मिचोली खेलता रहा
शुक्रिया किया आज नींद का मैंने. ..मगर मैं इस रात कि..
अकेली गवाह ना थी.. एक उल्लू भी साख पे बैठा सब देखता रहा

vandana
1/28/2010



Tuesday, January 26, 2010

मोहब्बत है हमको मोहब्बत से


ye rachna meri sabse pehli rachna hai ...:) isse pehle bhi kuch likha hoga jo ab yaad nahi ..ye rachna meri dayri k pehle panne se hai ..to ab yahi pehli kavita ka sthaan liye hue hai ...:)



मोहब्बत है हमें उस चाँद से जो अँधेरी रातो से मोहब्बत करता है
मोहब्बत है हमको उस अन्धकार में डूबे गगन से जो तारो से मोहब्बत करता है
मोहब्बत है हमें उस तन्हा आलम से जो तन्हाई से मोहब्बत करता है
मोहाबत है हमें सुबह के उस पहले नज़ारे से ..जो सूरज कि पहली किरण से मोह्हबत करता है
मोहब्बत है हमें मोसम कि उस नजाकत से जो हर मचलते दिल से मोहब्बत करता है
मोहब्बत है हमको उस बादल से जो धरती से मोहब्बत करता है
मोहब्बत है हमको उस समंदर से जो तड़पती प्यासी लहरों से मोहब्बत करता है
मोहब्बत है हमें उस बहती नदिया से जो पानी कि सिसकियों से मोहब्बत करती है
मोहब्बत है हमें उन मोजो से जो तूफानों से मोहब्बत करती है
मोहब्बत है हमें उस भँवरे से फूलो से मोहब्बत करता है
मोहब्बत है हमें उस गुलाब से जो कांटो से मोहब्बत करता है
मोहब्बत है हमें उस कमल से जो कीचड से मोहब्बत करता है
मोहब्बत है हमें अपने नादाँ दिल से जो जिन्दंगी के हर पहलू से मोहब्बत करता है
मोहब्बत है हमें अपने ख्यालो से जो किसी कि यादो से मोहब्बत करता है
मोहब्बत है हमें अपने सपनो से जो अनजान चेहरे से मोहब्बत करता है
मोहब्बत है हमको अपने दीवानेपन से जो मोहब्बत से मोह्हबत करता है...

Thursday, January 21, 2010

aashaar !!

जिन्दगी कि मुश्किल राहो पर मुझे सलीके से चलना तो नहीं आया .
.बस इतना ही अदब मुझमे ..के हर ठोकर पे मैं खुद को संभालती रही हूँ

ना बुलंदियों कि चाह है ....ना गहराहियो से डर ..शर्ते जिंदगानी
बस यही है मेरी के मैं खुद को खुद में तलाशती रही हूँ

जिस खुदगर्ज दुआ के वास्ते हाथ रब के आगे यूँ तो कभी फैलाये नहीं मैंने ..
मगर ये सच है के उसे ... टूटते तारो से अक्सर मांगती रही हूँ

जिसे भीड़ में तलाश नहीं पाई कभी नजरे मेरी
मैं अक्सर खामोश तन्हाई में उसे पुकारती रही हूँ

आईना कुछ खफा खफा सा रहता है मुझसे ..लाजमी है ..
अक्सर झुठलाकर उसे मैं खुद को किसी कि आँखों में संवारती रही हूँ.

Sunday, January 17, 2010

ऐ दुनिया तेरे कितने रंग





सच होता निलाम देखूं ...या झूठ के लगते दाम देखूं
ऐ दुनिया तेरे कितने रंग मैं क्या देखूं क्या न देखू


धर्म पे लगते बाजार देखूं ,संक्रमण सा फैला भ्रस्टाचार देखूं
लहराती फसल देखूं या देश में उगती खरपतवार देखूं.
ऐ दुनिया तेरे कितने रंग मैं क्या देखूं क्या न देखूं


त्यौहारों के सजे पंडाल देखूं, हर गली में मचा हाहाकार देखूं
ललाट पे सजता सिन्दूर देखूं या खून सने हाथ लाल देखूं.
ऐ दुनिया तेरे कितने रंग मैं क्या देखूं क्या न देखूं


नन्हे हाथों में औजार देखूं, गंगन चुम्बी मीनार देखूं
देश का विकास देखूं या भविष्य की ढहती दीवार देखूं
ऐ दुनिया तेरे कितने रंग मैं क्या देखूं क्या न देखूं


बुराई के चक्रव्यू में फसां खुद को अभिमन्यु सा लाचार देखूं .
कोरव सी सेना पर इतराऊं या अंधे की सरकार देखूं
ऐ दुनिया तेरे कितने रंग मैं क्या देखूं क्या न देखूं


सच को होता निलाम देखूं ..या झूठ के लगते दाम देखू
ऐ दुनिया तेरे कितने रंग मैं क्या देखूं क्या न देखूं ......
[vandana & neeraj ]








तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...