Thursday, January 21, 2010

aashaar !!

जिन्दगी कि मुश्किल राहो पर मुझे सलीके से चलना तो नहीं आया .
.बस इतना ही अदब मुझमे ..के हर ठोकर पे मैं खुद को संभालती रही हूँ

ना बुलंदियों कि चाह है ....ना गहराहियो से डर ..शर्ते जिंदगानी
बस यही है मेरी के मैं खुद को खुद में तलाशती रही हूँ

जिस खुदगर्ज दुआ के वास्ते हाथ रब के आगे यूँ तो कभी फैलाये नहीं मैंने ..
मगर ये सच है के उसे ... टूटते तारो से अक्सर मांगती रही हूँ

जिसे भीड़ में तलाश नहीं पाई कभी नजरे मेरी
मैं अक्सर खामोश तन्हाई में उसे पुकारती रही हूँ

आईना कुछ खफा खफा सा रहता है मुझसे ..लाजमी है ..
अक्सर झुठलाकर उसे मैं खुद को किसी कि आँखों में संवारती रही हूँ.

3 comments:

  1. ना बुलंदियों कि चाह है ....ना गहराहियो से डर ..शर्ते जिंदगानी
    बस यही है मेरी के मैं खुद को खुद में तलाशती रही हूँ

    जिस खुदगर्ज दुआ के वास्ते हाथ रब के आगे यूँ तो कभी फैलाये नहीं मैंने ..
    मगर ये सच है के उसे ... टूटते तारो से अक्सर मांगती रही हूँ ....excellent se behtar kuch aur hota hamari dictionary mein to zaroor boltey but nahi hai... jaise hamare man ko padh kar likha hai...very nice

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  2. bahut khubsurat .... kabile tarif...

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...