जिन्दगी कि मुश्किल राहो पर मुझे सलीके से चलना तो नहीं आया .
.बस इतना ही अदब मुझमे ..के हर ठोकर पे मैं खुद को संभालती रही हूँ
ना बुलंदियों कि चाह है ....ना गहराहियो से डर ..शर्ते जिंदगानी
बस यही है मेरी के मैं खुद को खुद में तलाशती रही हूँ
जिस खुदगर्ज दुआ के वास्ते हाथ रब के आगे यूँ तो कभी फैलाये नहीं मैंने ..
मगर ये सच है के उसे ... टूटते तारो से अक्सर मांगती रही हूँ
जिसे भीड़ में तलाश नहीं पाई कभी नजरे मेरी
मैं अक्सर खामोश तन्हाई में उसे पुकारती रही हूँ
आईना कुछ खफा खफा सा रहता है मुझसे ..लाजमी है ..
अक्सर झुठलाकर उसे मैं खुद को किसी कि आँखों में संवारती रही हूँ.
ना बुलंदियों कि चाह है ....ना गहराहियो से डर ..शर्ते जिंदगानी
ReplyDeleteबस यही है मेरी के मैं खुद को खुद में तलाशती रही हूँ
जिस खुदगर्ज दुआ के वास्ते हाथ रब के आगे यूँ तो कभी फैलाये नहीं मैंने ..
मगर ये सच है के उसे ... टूटते तारो से अक्सर मांगती रही हूँ ....excellent se behtar kuch aur hota hamari dictionary mein to zaroor boltey but nahi hai... jaise hamare man ko padh kar likha hai...very nice
bahut khubsurat .... kabile tarif...
ReplyDeletebeautiful work....
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