गीत, ग़ज़ल, नज्म ..ये सब मेरी साँसों कि डोर, महंगा पड़ेगा बज्म को मेरी खामोशियों का शोर ! --- "वन्दना"
Thursday, September 20, 2012
Monday, September 17, 2012
कमजोर लड़की !
वो चुप्पियों के लिबाज़ वाली..
खुद के ही दायरे में कैद ..
एक कमजोर लड़की
अपनी ही परिभाषाओं में
हर वक्त उलझी हुई
जिसे नही सिखाया सायद
बचपन ने बेबाक होना
जिसने खर्च दिए
दुआओं के सब सिक्के
हर छोटी बड़ी आरजू के नाम
मगर नही सीखा जिन्दगी से
इबादत का सही मतलब
एक डर न जाने
क्यूं ...और कब से
धीरे धीरे पलकर बड़ा
हो गया .दीमक सा
उसकी ज़हन कि सीली
परतों में
जिसने खा ली है
उसकी आँखों से
मस्तियों कि चमक
जिसने खोकला कर दिया है
उसके आत्मविश्वास को
पलकों में कैद है उसके
डरी ,सहमी सी लहरे
होठो पर कुछ मूक
जज्बात ..ढूंढते हैं
कोई राह उसकी आवाज
में घुलकर बोल पड़ने को
उसने खो दिए हैं
सलीके जीने के
एक ऐसे डर में जिसकी
कोई परिभाषा ही नही
उसे देखा है किसी कि खुशियों में
बेहद खुश होते हुए ..वो खुशी
जिसके लिए खर्चे थे उसने
खुशी खुशी अपनी दुआओं के
सबसे प्यारे और कीमती सिक्के
सबसे प्यारे और कीमती सिक्के
देखा है उसकी आँखों में एक
सुखद अहसास को आज मुस्कुराते हुए
उसकी चुप्पियों को सुकून पाते हुए
सुखद अहसास को आज मुस्कुराते हुए
उसकी चुप्पियों को सुकून पाते हुए
मगर वो ठहरी एक कमजोर लड़की
नहीं आता उसे कुछ भी जाहिर करना
वंदना
वंदना
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तुम्हे जिस सच का दावा है वो झूठा सच भी आधा है तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं कोरे मन पर महज़ लकीर...
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तुम्हे जिस सच का दावा है वो झूठा सच भी आधा है तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं कोरे मन पर महज़ लकीर...
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जितना खुद में सिमटते गए उतना ही हम घटते गए खुद को ना पहचान सके तो इन आईनों में बँटते गये सीमित पाठ पढ़े जीवन के उनको ही बस रटत...
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ख़ामोशी कभी बन जाते हैं कभी सन्नाटों में चिल्लाते हैं अजीब हैं लफ़्ज़ों के रिश्ते !! - वंदना