जो भी महरबां थे ,वो आज रब से हो गये..
निकले थे सफ़र पे हम खुद को तलाशने
कैसा मुकाम आया कि दूर सब से हो गये ..
रोज कुछ नया सा यूँ लिखा जिंदगी ने
कि सब पुराने सफ़हे बे सबब से हो गये..
ठहरे हुए पानी से कोई दुआ नही मांगी
अपनी इबादतों के सिक्के जब से खो गये ..
सुनकर पुकार उसने मुड़कर भी न देखा
इतने बुरे भी हम न जाने कब से हो गये ...
- वंदना