Sunday, April 22, 2012

गज़ल



जिंदगी ये तेरे गम  क्यूं अजब से हो गये 
जो भी महरबां थे ,वो आज रब से हो गये.. 

निकले थे सफ़र पे हम खुद को तलाशने 

कैसा मुकाम आया कि दूर सब से हो गये ..

रोज कुछ नया सा  यूँ लिखा जिंदगी ने 

कि सब पुराने सफ़हे  बे सबब से हो गये..

ठहरे हुए पानी  से   कोई दुआ  नही मांगी 

अपनी इबादतों के सिक्के जब से खो गये ..

सुनकर पुकार उसने मुड़कर भी न  देखा
इतने बुरे भी हम न  जाने कब से हो गये ...




- वंदना 

Tuesday, April 10, 2012

खुमार ए तसव्वुर ..




जब वक्त कि धुंध में 
यादे कहीं खोने लगें ..
जब्त कि थपकियों से
ख्वाइशे सब सोने लगें ..
बदल ने लगें मायने
अगर मेरी तहरीरों के ..
हर खलिश दिल कि 
मौन अगर होने लगे.. 
जब ख्यालों का नगर 
ख़ाली ख़ाली सा हो.. 
जब अहसासों कि 
दुनिया भी रितने लगे ..

जीवन के किसी मौड़ पर 
मैं खुद को कहीं भूल जाऊं 
बस ऐसे कुछ कमजोर 
पलों में ....तुम मुझको 
आवाज लगाते रहना.. 
मैं चाहूँ या ना चाहूं 
ऐ खुमार ए तसव्वुर 
तुम यूँ ही आते रहना.. !

' वंदना '
 

Sunday, April 8, 2012

ग़ज़ल

ये क्या शोक तुमने पाले हुए हैं 
एहसास मानो रिसाले* हुए हैं  

तपती धूप और लम्बा है सफ़र
पाँव  में अभी से क्यूं  छाले हुए हैं 

जाँ से गुजरते जुगनू  को देखो 
बाद मुद्दत के जैसे उजाले हुए हैं 

सबब डूबने का तुम पूछो उनसे 
मौजो के खुद जो हवाले हुए हैं 

चुराए हुए कुछ पल जिंदगी से 
न पूछो क्यूं अबतक संभालें हुए हैं 


- वंदना 

Sunday, April 1, 2012

ग़ज़ल



मौसम से कोई  कै सा  इशारा कर गया 
 नसीम ए शहर को ही आवारा कर गया 

इन आँखों  से  गया  सपने तमाम कोई 
आज फिर मेरी नीदें बेसहारा कर गया  

अगले हर जन्म में ये चाँद हमारा होगा 
दुआ   हमारे वास्ते टूटता तारा कर गया 

कितने अजीब रंग में बांटी दुनिया को जिंदगी 
कौन खुदा कि इनायत का बंटवारा कर गया 

पानी में मिला दिया  किसने वजूद आंसू का 
सदा के लिए समंदर  कौन खारा कर गया 


- वंदना 

तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...