Tuesday, April 10, 2012

खुमार ए तसव्वुर ..




जब वक्त कि धुंध में 
यादे कहीं खोने लगें ..
जब्त कि थपकियों से
ख्वाइशे सब सोने लगें ..
बदल ने लगें मायने
अगर मेरी तहरीरों के ..
हर खलिश दिल कि 
मौन अगर होने लगे.. 
जब ख्यालों का नगर 
ख़ाली ख़ाली सा हो.. 
जब अहसासों कि 
दुनिया भी रितने लगे ..

जीवन के किसी मौड़ पर 
मैं खुद को कहीं भूल जाऊं 
बस ऐसे कुछ कमजोर 
पलों में ....तुम मुझको 
आवाज लगाते रहना.. 
मैं चाहूँ या ना चाहूं 
ऐ खुमार ए तसव्वुर 
तुम यूँ ही आते रहना.. !

' वंदना '
 

8 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...

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  2. यादें ही बन जाती हैं सहारा..............
    बहुत सुंदर वंदना जी....

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  3. बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना है।

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  4. बहुत खूब ...खूबसूरत खयाल

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  5. जीवन के किसी मौड़ पर
    मैं खुद को कहीं भूल जाऊं
    बस ऐसे कुछ कमजोर
    पलों में ....तुम मुझको
    आवाज लगाते रहना..
    मैं चाहूँ या ना चाहूं
    ऐ खुमार ए तसव्वुर
    तुम यूँ ही आते रहना.. !
    .... बहुत प्यारी अभिव्यक्ति

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  6. यादें अच्छी हो या बुरी ,यही अंत में यही अपने पास रह जाती हैं...बहुत भावपूर्ण सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  7. "तुम मुझको आवाज़ लगाते रहना.."
    बहुत खूबसूरत भाव ऐर रचना

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  8. waah....kya baat hai....beautiful!!

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...