लाख चाह कर भी पुकारा जाता नही है
वो नाम अब लबों पर आता नही है
इसे खुदगर्जी कहें या बेबसी का नाम दें
चाहते हैं पर अना से हारा जाता नही है
दिल ख़्वाबों में भटकता एक बंजारा है
कि जिसके हिस्से में सबात आता नही है
छुप गया वो चाँद अब आसमाँ के पीछे
नूर ए अक्स मगर क्यूँ धुंधलाता नही है
मुक्कमल दी हैं हमने सजाएँ दिल को
कसूर मगर इसका समझ आता नही है
न तुम खफा रहो न किसी को रहने दो
जो चला जाता है दुबारा आता नही है
इस बात के एहसास और डर में मरते हैं
जिन्दा रहने का हुनर भी आता नही है !!
~~ वंदना
बहुत सुंदर गजल.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (30-11-2013) "सहमा-सहमा हर इक चेहरा" “चर्चामंच : चर्चा अंक - 1447” पर होगी.
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है.
वाह.....
ReplyDeleteछुप गया वो चाँद अब आसमाँ के पीछे
नूर ए अक्स मगर क्यूँ धुंधलाता नही है
बहुत बढ़िया ग़ज़ल....
अनु
बहुत बढ़िया ग़ज़ल....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ग़ज़ल , सारे शेर एक से बढ़ कर एक
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत ग़ज़ल...
ReplyDeletebahut badhiya ... bahut khoob
ReplyDeleteन तुम खफा रहो न किसी को रहने दो
जो चला जाता है दुबारा आता नही है
ye bahut khoob hain
सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है
http://iwillrocknow.blogspot.in/
बहुत सुन्दर ग़ज़ल.... एक से बढ़ कर एक शेर
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