Thursday, November 28, 2013

ग़ज़ल




लाख चाह कर भी पुकारा  जाता नही है 
वो  नाम अब  लबों पर     आता नही है 

इसे खुदगर्जी कहें या बेबसी का नाम दें 
चाहते हैं पर अना  से हारा जाता नही है 

दिल ख़्वाबों में भटकता एक बंजारा है 
कि जिसके हिस्से में सबात आता नही है  

छुप गया  वो चाँद अब आसमाँ के पीछे 
नूर ए अक्स मगर क्यूँ धुंधलाता नही है 

मुक्कमल दी हैं  हमने सजाएँ  दिल को 
कसूर मगर  इसका समझ आता नही है 

न तुम खफा रहो न किसी को रहने दो 
जो चला जाता है दुबारा आता नही है 

इस बात के एहसास और डर में मरते हैं 
 जिन्दा रहने का हुनर भी आता नही है  !!




~~ वंदना 



9 comments:

  1. बहुत सुंदर गजल.

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (30-11-2013) "सहमा-सहमा हर इक चेहरा" “चर्चामंच : चर्चा अंक - 1447” पर होगी.
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है.

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  3. वाह.....
    छुप गया वो चाँद अब आसमाँ के पीछे
    नूर ए अक्स मगर क्यूँ धुंधलाता नही है

    बहुत बढ़िया ग़ज़ल....
    अनु

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  4. बहुत बढ़िया ग़ज़ल....

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  5. बहुत सुन्दर ग़ज़ल , सारे शेर एक से बढ़ कर एक

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  6. बहुत खूबसूरत ग़ज़ल...

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  7. bahut badhiya ... bahut khoob

    न तुम खफा रहो न किसी को रहने दो
    जो चला जाता है दुबारा आता नही है

    ye bahut khoob hain

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  8. सुंदर प्रस्तुति
    मेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है
    http://iwillrocknow.blogspot.in/

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  9. बहुत सुन्दर ग़ज़ल.... एक से बढ़ कर एक शेर

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