Wednesday, March 30, 2011





क्या जाने क्यूं इस तरह मूह मोड़ने लगा कोई 
जैसे बिलखते बच्चे को अकेला छोड़ने लगा कोई 

खुद को बहलाने कि वो अपनी तमाम कोशिशे 
जैसे टूटे हुए एक खिलौने को जोड़ने लगा कोई 

वो हर जज़्बात जिसकी जड़े रगों तक फैली हैं 
जैसे रूह से एक एक  सब किरोदने लगा कोई

हंसी चेहरे पे गुलाब सी  मानो उधार थी उसका 
उस फूल कि  हर पंखुड़ी अब नोचने लगा कोई 
   
जिंदगी से ऐसा भी ... कोई  वादा तो नहीं था 
फिर भी जीने के लिए कफ़न ओढने लगा कोई 



Saturday, March 26, 2011

टीस







कैसी शिकायत ,
कैसी नाराज़गी 
कौन से  गिले ..
कहाँ के शिकवे ..

काश हमने कुछ कहा होता 
काश  तुमने कुछ सुना होता 

हर टीस मुनासिब* होती..
हर दर्द लाज़मी होता !


[मुनासिब = उचित ]



Friday, March 25, 2011

भीगी हुई सुबह





भीगी हुई सुबह 
ठिठुरते हुए पंछी 
टहनियो से मुंह  निकाल 
झाँकती बसंती कूप 

मदमस्त हवा के 
सुरूर से चलो
टकरा लिया जाय

झूले कि उड़ानों पर 
एक अजनबी आकाश में 
अपनी सुधियों का 
पता लिया जाय

ज़हन के सफहों पर 
साँसों कि लकीरों से ,
कोई ख़त बे नाम 
लिखा  जाय

-वंदना 




Tuesday, March 22, 2011

नज्मे .. तितली सी मंडराती हुई




मन के आँगन  में 
नज्मे .. तितली सी 
 मंडराती हुई.. 
कभी यहाँ बैठ 
कभी वहां बैठ 

कभी लबो कि मुस्कान पर 
कभी आँखों कि हया पर 
कभी अधूरे से सुकून पर 
कभी दिल कि कसक पर

सोचती हूँ झट से पकड़ लूं 
या जिंदगी बख्श दूं  ?





Thursday, March 10, 2011

परदेश



मानो परिंदे निकले हैं तिनको कि तलाश में 
माँ के हाथ में मुन्तसिर निवाला छोड़ आए

जो पीढ़ियों का हमें सदा वास्ता देता रहा  
उसी घर पे हाँ हम   ताला छोड़ आए

चलते वक्त दादी कि तस्वीर याद रही 
मगर अफ़सोस वो बासी माला छोड़ आए 

उन  आँखों के उजाले हमारे साथ चलते हैं 
चश्मे के पीछे जिनमे हम जाला छोड़ आए

वो लाठी उन अंधेरो को रास्ता दिखाती तो होगी 
जीवन का जिनमे बेशकीमती उजाला छोड़ आए

 बेगाने से रिश्तो में अब यहाँ वफ़ा ढूंढ रहे हैं 
हम कुछ अपनों को वहां बिलखता छोड़ आए 



वन्दना 

Wednesday, March 9, 2011

हाँ हमने मोहब्बत कर के देख ली !






जीने की तलब मर मर के देख ली
हाँ हमने मोहब्बत   कर के देख ली 

जो चाहा जिंदगी से  ,मिला ही नही  
हमने  साँसे   गिरवी  धरके देख ली 

एक चेहरे में   छुपे हैं  चेहरे कितने 
एक सूरत हमने पढके के देख ली 

लहरों को नाज़ था जिसपे बहुत 
वो गहराई हमने उतर के देख ली 

मुझे  जिंदगी के इल्जाम डराते हैं 
बेगुनाही भी 'नजर' कर के देख ली !

'वन्दना' 

Thursday, March 3, 2011

नम आँखों से कोई जब उदासी मुस्कुराती हैं


नम आँखों से कोई जब उदासी मुस्कुराती हैं 
जल जाते हैं ये लब ,रूह झुलस जाती है.. 

टूटते हैं तार इक इक  साँसों कि वीणा के  
कोई दूर कि हवा  जब सुर छेड़ जाती है ..

गुज़रता मैं नहीं हूँ उन गलियों से मगर 
बंद दरिचो से कोई ...सदा तो बुलाती है.. 

रक्खे थे तेरे पास जो पंख गिरवी कभी 
तेरी हि परवाज़ मुझे याद वो दिलाती है 

होने न दिया दर्द को रुसवा कभी मगर 
तन्हाई में अक्सर ही आँख भर आती है.. 

गिला कोई दिल को जब भी तुझसे हुआ 
चुन चुन खतायें मेरी , जिंदगी बताती है.. !!




Tuesday, March 1, 2011

यूँ ही..




कुछ ख्वाबो के
 पाँव नहीं होते ..

सिर्फ 'पर' होते हैं...
ये चंद ख़्वाब 
वही बे पाँव  वाले मुसाफिर हैं..
जब दिल के नगर से जायेंगे 
तो कोई पगचिन्ह बाकी न होंगे 
बस तुम चुन लेना 
वो बिखरे हुए पंख 
और रख लेना 
यादों कि किताब के 
किसी खूबसूरत से पन्ने में 

जिंदगी में जब भी कोई
 ऐसा पल आये जब ,
मुस्कुराने कि या उदास 
होने कि वजह ना मिले..
तब खोलना जहन के 
ताबूत में बंद ये किताब 
महसूस करना 
इन ख्वाबो कि 
उस परवाज़ को 
जिसे जिंदगी कि 
इन हवाओ में ही कहीं 
खोया हुआ पाओगी  !!


वन्दना 

तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...