गीत, ग़ज़ल, नज्म ..ये सब मेरी साँसों कि डोर, महंगा पड़ेगा बज्म को मेरी खामोशियों का शोर ! --- "वन्दना"
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
तुम्हे जिस सच का दावा है वो झूठा सच भी आधा है तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं कोरे मन पर महज़ लकीर...
-
तुम्हे जिस सच का दावा है वो झूठा सच भी आधा है तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं कोरे मन पर महज़ लकीर...
-
जितना खुद में सिमटते गए उतना ही हम घटते गए खुद को ना पहचान सके तो इन आईनों में बँटते गये सीमित पाठ पढ़े जीवन के उनको ही बस रटत...
-
वफायें ..जफ़ाएं तय होती है इश्क में सजाएं तय होती हैं पाना खोना हैं जीवन के पहलू खुदा की रजाएं.. तय होती हैं ये माना... के गुन...
सच ही तो
ReplyDeleteकितनी खूबसूरत हैं ये तितलियाँ !
रंग-बिरंगी ......चंचल ...पंख डुलाती तितलियाँ !!
न जाने कहाँ-कहाँ से आती हैं
कितने संदेशे लिए
प्यार भरे
अनोखे
और मन के कैनवास पर बिखरा देती हैं
बहुत कुछ .....
बाद में
वहां
नज़र आती हैं नज्में
और सिर्फ नज्में
हलके से पकड़ना इन्हें
बेहद नाज़ुक जो हैं....
वन्दना जी ! आपने कुछ तितलियाँ तो इधर भी उड़ा दीं .......एक को पकड़कर आपकी ओर भेज रहा हूँ.....संभालियेगा .
खूबसूरत ...ऐसा कुछ करो कि ज़िंदगी भी रहे और तुम्हारे पास भी रहें नज्में
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिब्यक्ति| धन्यवाद|
ReplyDeletejhat se pakad lun ya zindagi baksh dun...i too wonder the same :)
ReplyDeleteज़िन्दगी बख्श दो इनको,
ReplyDeleteइनको सांस लेने दो.
सलाम.
mat pakdo ...
ReplyDeleteuse bhi hawaon ko mahsoos karne do
choti si sundar si.....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना..मासूम अहसास मन को छू जाते हैं..
ReplyDelete