Tuesday, March 22, 2011

नज्मे .. तितली सी मंडराती हुई




मन के आँगन  में 
नज्मे .. तितली सी 
 मंडराती हुई.. 
कभी यहाँ बैठ 
कभी वहां बैठ 

कभी लबो कि मुस्कान पर 
कभी आँखों कि हया पर 
कभी अधूरे से सुकून पर 
कभी दिल कि कसक पर

सोचती हूँ झट से पकड़ लूं 
या जिंदगी बख्श दूं  ?





8 comments:

  1. सच ही तो
    कितनी खूबसूरत हैं ये तितलियाँ !
    रंग-बिरंगी ......चंचल ...पंख डुलाती तितलियाँ !!
    न जाने कहाँ-कहाँ से आती हैं
    कितने संदेशे लिए
    प्यार भरे
    अनोखे
    और मन के कैनवास पर बिखरा देती हैं
    बहुत कुछ .....
    बाद में
    वहां
    नज़र आती हैं नज्में
    और सिर्फ नज्में
    हलके से पकड़ना इन्हें
    बेहद नाज़ुक जो हैं....

    वन्दना जी ! आपने कुछ तितलियाँ तो इधर भी उड़ा दीं .......एक को पकड़कर आपकी ओर भेज रहा हूँ.....संभालियेगा .

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  2. खूबसूरत ...ऐसा कुछ करो कि ज़िंदगी भी रहे और तुम्हारे पास भी रहें नज्में

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  3. बहुत सुन्दर अभिब्यक्ति| धन्यवाद|

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  4. jhat se pakad lun ya zindagi baksh dun...i too wonder the same :)

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  5. ज़िन्दगी बख्श दो इनको,
    इनको सांस लेने दो.

    सलाम.

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  6. mat pakdo ...
    use bhi hawaon ko mahsoos karne do

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  7. बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना..मासूम अहसास मन को छू जाते हैं..

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...