Saturday, October 11, 2014

मुझसे मेरी प्यास ना छीन



मुझसे मेरी प्यास ना छीन 
जीने का एहसास ना छीन

न हो शामिल सफर में लेकिन
 पंख न छीन परवाज़ ना  छीन

ये उजले अँधेरे हैं जीवन के
तारों की तू सौगात ना  छीन

झूठे - सच्चे ख़ाब दिखा पर 
मुझसे मेरी नींद ना छीन 

मुझको बख्श तू धूप घनेरी
पर मेरे ही  साये ना छीन

~ वंदना 

Thursday, October 2, 2014

नज़्म




वक्त का पिंजर 
परिंदे  को अक्सर 

छोड़ देता है कुछ पल 
 भटकने के लिए 


मगर परवाज़ इस कदर 
बोझिल है की 
सिमटके रह जाती है 
माज़ी के दरीचों में  

अक्सर अपने ही 
सायो  से टकराकर 
जब गिर पड़ता है 
तो समेटता हुआ अपने आप को 
 यूं कह कर  उठ जाता है

प्यार ,दिल में जिन्दा रहता है 
बस आँखों में मर जाता है !


~ वंदना 



तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...