वो अक्सर कह देती थी
अपनी बातों में कुछ अनकहा भी
और मैं अनसुना करते हुए
सब सुन भी लेता था
मगर एक दिन मेरे हिस्से का शोर
मुझे सौंप कर
वो चुप हो गई
तब से उसकी चींखों का भी
मुझसे राब्ता हो गया है
वो उड़ेल देती थी शब्दों में खुद को पूरा पूरा
और मैं एक आधी अधूरी प्यास लिए
तृप्ति की परिभाषाएँ तय करता रहता था
उसकी मोहब्बत घुटनो के बल रेंगते हुए
घोट देती थी अक्सर गला मेरी अना का
और मैं बार- बार खुद में ही मर जाता था
मैं दर्ज़ हूँ ताबूत में बंद
किसी किताब में और
दुनिया की उड़ती खबरों में
अपना होना तलाश रहा हूँ
~ वंदना
७/१४/२०१६
अपनी बातों में कुछ अनकहा भी
और मैं अनसुना करते हुए
सब सुन भी लेता था
मगर एक दिन मेरे हिस्से का शोर
मुझे सौंप कर
वो चुप हो गई
तब से उसकी चींखों का भी
मुझसे राब्ता हो गया है
वो उड़ेल देती थी शब्दों में खुद को पूरा पूरा
और मैं एक आधी अधूरी प्यास लिए
तृप्ति की परिभाषाएँ तय करता रहता था
उसकी मोहब्बत घुटनो के बल रेंगते हुए
घोट देती थी अक्सर गला मेरी अना का
और मैं बार- बार खुद में ही मर जाता था
मैं दर्ज़ हूँ ताबूत में बंद
किसी किताब में और
दुनिया की उड़ती खबरों में
अपना होना तलाश रहा हूँ
~ वंदना
७/१४/२०१६