Friday, May 31, 2013

ग़ज़ल




कोई गीत नये  सुरों में जब गाया जायेगा 
साँसों के साज़ को कैसे भुलाया जायेगा 


धूप है कहीं छांव  कहीं अँधेरा भी होगा 
हमारे साथ कहाँ तक ये साया जायेगा 


तवक्को फकत  एक उदासी का सामान है 
ये बोझ दिल से कब तक उठाया जायेगा 


यूँ हम पर  कोई भी इल्जाम तो नही है 
मगर क्या आइने से पीछा छुड़ाया जायेगा 


न ताल्लुक कम हुआ है न राब्ता ,मगर 
न वो आ सकेगा न हमसे बुलाया जायेगा !



वंदना 



तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...