कोई गीत नये सुरों में जब गाया जायेगा
साँसों के साज़ को कैसे भुलाया जायेगा
धूप है कहीं छांव कहीं अँधेरा भी होगा
हमारे साथ कहाँ तक ये साया जायेगा
तवक्को फकत एक उदासी का सामान है
ये बोझ दिल से कब तक उठाया जायेगा
यूँ हम पर कोई भी इल्जाम तो नही है
मगर क्या आइने से पीछा छुड़ाया जायेगा
न ताल्लुक कम हुआ है न राब्ता ,मगर
न वो आ सकेगा न हमसे बुलाया जायेगा !
वंदना
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज शनिवार (01-06-2013) बिना अपने शब्दों को आवाज़ दिये (चर्चा मंचःअंक-1262) में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
तवक्को फकत एक उदासी का सामान है
ReplyDeleteये बोझ दिल से कब तक उठाया जायेगा
बेहतरीन गज़ल
बहुत बढिया ... सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeletebahut bahut abhaar aap sabhi ka .....:)
ReplyDeleteAha!!bahut sundar gazal!! :)
ReplyDeleteधूप है कहीं छांव कहीं अँधेरा भी होगा
ReplyDeleteहमारे साथ कहाँ तक ये साया जायेगा ,,,,
जब तक रौशनी है ये साया साथ देगा ... नहीं तो कौन रहता है अंधेरे में साथ ...
लाजवाब गज़ल है ..
"न वो आ सकेगा न हमसे बुलाया जाएगा"आह !
ReplyDeleteखूबसूरत !