Tuesday, December 22, 2009

कुछ आशार !

उसके हर इल्जाम को......... सराखों पर लिया हमने
यूँ तो ..मैल ए दिल सफा करना भला किसे नहीं आता

हमारी उल्फतो को कहीं वो तिजारत ना समझ बैठे
वरना नेक दिल से वफ़ा करना भला किसे नहीं आता

ऐ मोहब्बत ..................मुझे तेरे तकाजे डराते है
वरना हाल ए दिल बयां करना भला किसे नहीं आता

सच जानकर भी दिल में अपने मैंने भ्रम रहने दिया

वरना ..आईने में खुद को परखना भला किसे नहीं आता

समेट लिया खुद ही को हमने ; नहीं तो वो बिखर गए होते
किसी अपने कि गोद में फूटकर रोना भला किसे नहीं आता

पिंजरे के परिंदे को शायद निवालों का लिहाज
रहा
वरना दर ए तकदीर खुला देख उड़ना भला किसे नहीं आता

यकीनन ,कलयुग कि करतूतों से भगवान् भी डरे बैठे है
वरना यहाँ पत्थर पर राम लिखना भला किसे नहीं आता

वंदना
२१ /१२/ २००९


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Thursday, December 3, 2009

गजल

ये धुआं है सुलगती अंगीठी का जो आंखे मेरी कडवी हो गई ...
जब अंगार धह्केंगे ...तो माँ तवा चढाएगी ....

मुल्क में उठते धुंए से आज में कितना डर गयी ....
सुलगती लाशो के ढेर पर सियासत ...जाने क्या पकाएगी

पड़ोसन दहशत के डर से सांकल लगाये बैठी है
जाने किस भेश में हैवानियत चली आएगी ....

वो शरहदों पार जो घरो में अपने बारूद बो रहा है
घर कि ओरते कब तक चिराग डर डर के जलाएँगी ...


अपनी ही किसी चिंगारी से एक दिन राख हो जायेगा
मगर इंसानियत के मूह से ये कालिख ना जाएगी...


मेरी माँ जाने किस दर्द में अकेले बैठी रो रही है

मैं कैसे जाऊं ...मुझे देखकर रो भी ना पायेगी ....

मैं लाख पूछूंगी ...वो भीगे लबो से मुस्कुरा ही देगी
मैं सबब पूछूंगी लाल आँखों का ...वो तिनका बताएगी ....

रहने दे सखी... ना पूछ हमसे एहसास ए मोहब्बत
ये दिल कि मूक बेबसी ..कभी लबो पे आ ना पाएगी ....

किसी पिंजरे के पंछी को कभी आसमां मत दिखाना
नाजुक पंखो से सलाखे तोड़ने कि जिद में..अभिलाषाएं उसे तोड़ जाएँगी ....

12-3- 2009
-वंदना

तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...