Saturday, October 27, 2012

त्रिवेणी



पलकों भर आकाश  में मुट्ठी भर के तारे 
गिनती करने बैठे ..ऊँगली पर आ गए सारे 

    बचपन ले गया जाते जाते  हुनर वो कैसे कैसे !    

-वंदना 

Saturday, October 13, 2012

ग़ज़ल


हमें कांश  कोई तुमसे भी प्यारा होता 
जो सिर्फ हमारा और हमारा    होता !

सपनो में भी आता  हकीकत कि तरह 
हमने नींदों में उसको जब पुकारा होता !

न कोई चाँद न जुगनू  कुछ भी न सही ..
महज़ आँखों में  चमकता  एक तारा होता !

झुठलाये हैं सच अपने हिस्से के हमने.. 
किसी पल को  झूठ का भी सहारा होता !

जो गुजरी है वो चेहरे पे कब आ सकी है 
कांश किसी पल ये हौंसला भी हारा होता !

कट गया वक्त जिस अज़ाब के साथ 
न होता अगर ये तो  कैसे गुजारा होता !

समेटीं है ज़द में ये बहती हुई नदियाँ..
क्या करता समन्दर जो न खारा होता !


' वंदना '


Friday, October 5, 2012

त्रिवेणी



जहाँ से अहल ए दिल लेकर अज़ाब लौट आये 
टकरा के कुर्बत से पलकों के खाब लौट आये.. 

फिर वहीँ ले आती हैं ये लम्हों कि कमजोरियाँ !

- वंदना 

तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...