हमें कांश कोई तुमसे भी प्यारा होता
जो सिर्फ हमारा और हमारा होता !
सपनो में भी आता हकीकत कि तरह
हमने नींदों में उसको जब पुकारा होता !
न कोई चाँद न जुगनू कुछ भी न सही ..
महज़ आँखों में चमकता एक तारा होता !
झुठलाये हैं सच अपने हिस्से के हमने..
किसी पल को झूठ का भी सहारा होता !
जो गुजरी है वो चेहरे पे कब आ सकी है
कांश किसी पल ये हौंसला भी हारा होता !
कट गया वक्त जिस अज़ाब के साथ
न होता अगर ये तो कैसे गुजारा होता !
समेटीं है ज़द में ये बहती हुई नदियाँ..
क्या करता समन्दर जो न खारा होता !
' वंदना '
बहुत सुन्दर ||
ReplyDeleteबधाईयाँ ||
बेहद खूबसूरत ग़ज़ल है वंदना जी बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गज़ल...
ReplyDeleteबढ़िया शेर कहे हैं....
अनु
बहुत सुन्दर गजल...बधाई..
ReplyDeletebadhiya lagi gazal...
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