Saturday, October 27, 2012

त्रिवेणी



पलकों भर आकाश  में मुट्ठी भर के तारे 
गिनती करने बैठे ..ऊँगली पर आ गए सारे 

    बचपन ले गया जाते जाते  हुनर वो कैसे कैसे !    

-वंदना 

5 comments:

  1. देखन में छोटे लगे घाव करे गंभीर

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  2. बहुत सही..बचपन के वो दिन..?

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  3. बहुत खूब |
    मेरे ब्लॉग में भी पधारें |

    मेरा काव्य-पिटारा

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