Tuesday, November 19, 2013

मुलाक़ात

       

बरसों के बाद यूं देखकर मुझे 
तुमको हैरानी तो बहुत होगी 

एक लम्हा ठहरकर तुम 
सोचने लगोगे ...

जवाब में कुछ लिखते हुए 
तुम्हारी उँगलियाँ लड़खड़ाएंगी 

बचपन कि किताब के कई धुंधले वर्क
तुम्हारे मन कि बेचैन हवा में उड़कर  
आँखों में उतर आयेंगे शायद 

तुम्हारे कई शरारती से सवाल 
तुमको हैरान करेंगे.. 

फिर एक अजीब इत्तेफाक का 
तुम इसे नाम भी दोगे..

मगर तुमको कहाँ एहसास भी होगा 
कि बचपन कि दहलीज़ से 
उम्र के इस पड़ाव तक 
मैंने इस पल को हमेशा 
अपनी उम्मीदों में जिया है  

तुमको खोजा है अक्सर 
नींदों कि भटकन में 
तुमको पाया है अक्सर 
सपनो कि सरगम में.. 

इल्तेज़ा है बस यही  
तुमसे ऐ मेरे दोस्त  
इस  मुलाक़ात को तुम 
आखिरी मुलाक़ात न करना !



~ वंदना 








6 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार को (20-11-2013) जिन्दा भारत-रत्न मैं, मैं तो बसूँ विदेश : चर्चा मंच 1435 में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. मिलते रहेंगे जनम जनम.......
    सुन्दर सी रचना...

    अनु

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  3. सुन्दर प्रस्तुति-
    आभार आदरणीया --

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  4. बहुत सुन्दर रचना.
    नई पोस्ट : मेघ का मौसम झुका है

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  5. इस पोस्ट की चर्चा, बृहस्पतिवार, दिनांक :- 21/11/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक - 47 पर.
    आप भी पधारें, सादर ....

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  6. आशाओं पर टिका है, जीवन का यह तन्त्र।
    आशा औ' विश्वास का, बड़ा अनोखा मन्त्र।।

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...