दिल मुझसे पूछता है ये बात हर बहाने से
क्या जिंदगी होगी आसां तुझे भुलाने से ?
मुख़्तसर सा असर हो तो दिलासा भी दूँ
मर्ज घटता नही किसी का, जहर खाने से
है मुनासिब हम इसको खुदखुशी ही कहें
गुनाह कम नही होगा इलज़ाम लगाने से
गुजरे लम्हों कि तस्वीर निखर जाती है
दिल के दरिया में बस इक उछाल आने से
सोचते हि तुझे घटाओ में दिए जल उठे
जाने बारिशों पे क्या गुजरती तेरे आने से
मीठा हो जाता है हर दर्द गुनगुनाने से
- वंदना
खूबसूरत जज़्बात बेहद उम्दा गजल
ReplyDeletebahut hi sundar..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी का लिंक आज शनिवार (28-09-2013) को ""इस दिल में तुम्हारी यादें.." (चर्चा मंचःअंक-1382)
पर भी होगा!
हिन्दी पखवाड़े की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
है मुनासिब हम इसको खुदखुशी ही कहें
ReplyDeleteगुनाह कम नही होगा इलज़ाम लगाने से
बहुत सुन्दर ग़ज़ल !
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बहुत ही खूबसूरत रचना |
ReplyDeleteउम्दा लेखन |
लाजवाब प्रस्तुति करन
“महात्मा गाँधी :एक महान विचारक !”