Thursday, September 26, 2013

मीठा हो जाता है हर दर्द गुनगुनाने से



दिल मुझसे पूछता है ये  बात हर बहाने से
क्या जिंदगी  होगी  आसां तुझे भुलाने से  ?

मुख़्तसर सा असर हो तो दिलासा भी दूँ
मर्ज घटता नही किसी का, जहर खाने से

है मुनासिब हम इसको खुदखुशी ही कहें
गुनाह कम नही होगा  इलज़ाम लगाने से

गुजरे लम्हों कि  तस्वीर निखर जाती है
दिल के दरिया में बस  इक उछाल आने से


 सोचते  हि तुझे घटाओ में दिए जल उठे 
जाने बारिशों पे क्या गुजरती तेरे आने से 


ये तजुर्बा भी शायरी ने दिया है हमको
मीठा हो जाता है  हर दर्द गुनगुनाने से



- वंदना 








5 comments:

  1. खूबसूरत जज़्बात बेहद उम्दा गजल

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी का लिंक आज शनिवार (28-09-2013) को ""इस दिल में तुम्हारी यादें.." (चर्चा मंचःअंक-1382)
    पर भी होगा!
    हिन्दी पखवाड़े की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. है मुनासिब हम इसको खुदखुशी ही कहें
    गुनाह कम नही होगा इलज़ाम लगाने से

    बहुत सुन्दर ग़ज़ल !
    नई पोस्ट साधू या शैतान
    latest post कानून और दंड

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  4. बहुत ही खूबसूरत रचना |
    उम्दा लेखन |
    लाजवाब प्रस्तुति करन
    “महात्मा गाँधी :एक महान विचारक !”

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...