वो जब तनहा
दिल के किसी
कोने में सिमटकर
बैठती है
तलाशती है खुद में
एक बाँवरे पन को
वही जो किसी के
होने तक साथ था
खोजती है उस इश्क को
जो उसके बाँवरे पन ने
जो उसके बाँवरे पन ने
आखरी सी साँसों में
जिया था शायद ...
ढूंढती हूँ उसे
जहन में लगी
वक्त कि तस्वीरों में
वक्त कि तस्वीरों में
मगर
इश्क रूप नही है
इश्क सूरत नही है
इश्क मूरत नही है
इश्क सूरत नही है
इश्क मूरत नही है
इश्क काम नही है
इश्क आँखे नही हैं
इश्क आवाज़ नही है
काश ऐसा होता
तो मन कि तृप्ति
सरलतम हो सकती थी
और जिंदगी बहुत आसान
बूँद बूँद किसी प्यास में बँटता
- वंदना
इश्क आँखे नही हैं
इश्क आवाज़ नही है
काश ऐसा होता
तो मन कि तृप्ति
सरलतम हो सकती थी
और जिंदगी बहुत आसान
जो ठहरे तो दरिया है
उड़े तो जैसे बादल
उड़े तो जैसे बादल
बरसे तो सावन है
कभी आँख का बहता काजल
कभी आँख का बहता काजल
दिल की झील का पानी है।
एक समंदर खुद में लेकर
बहती नदिया की रवानी है
जिंदगी के साज़ पे नाचती
रूह कि टीस पुरानी है !
आखों में पलकर जवां होती
इश्क एक मौन कहानी है
- वंदना
behtarin, बहुत खूब
ReplyDeleteकुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।
ReplyDeleteजिंदगी के साज़ पे नाचती
ReplyDeleteरूह कि टीस पुरानी है !
badhiya...
जिंदगी के साज़ पे नाचती
ReplyDeleteरूह कि टीस पुरानी है !
badhiya...
इश्क कों शब्दों में व्यक्त ही नही किया जा सकता |
ReplyDelete“अजेय-असीम{Unlimited Potential}”
काश ऐसा होता
ReplyDeleteतो मन कि तृप्ति
सरलतम हो सकती थी
और जिंदगी बहुत आसान------
वाह बहुत सुंदर अनुभूति,मन को छूती हुई
प्रेम का कॊमल अहसास
बधाई
आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
ReplyDeleteआभार
उम्मीद तो हरी है-----
आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल {बृहस्पतिवार} 26/09/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" पर.
ReplyDeleteआप भी पधारें, सादर ....राजीव कुमार झा