Wednesday, January 10, 2018

खुद को छोड़ आए कहाँ, कहाँ तलाश करते हैं, 
रह रह के हम अपना ही पता याद करते हैं|

खामोश सदाओं में घिरी है परछाई अपनी 
भीड़ में  फैली इस तन्हाई से मगर डरते हैं| 

लहरों से कहाँ होगी मालूम ये  गहराई 
डूबने का डर छोड़ो तो नदी में उतरते हैं|


अना,बेबशी, गुरूर, खुद्दारी ,इन सबके बीच 
कितना मुश्किल है कहना कि तुझपे मरते हैं| 



~ वंदना

1 comment:

  1. nice lines, looking to convert your line in book format publish with HIndi Book Publisher India

    ReplyDelete

तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...