गीत, ग़ज़ल, नज्म ..ये सब मेरी साँसों कि डोर, महंगा पड़ेगा बज्म को मेरी खामोशियों का शोर ! --- "वन्दना"
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तुम्हे जिस सच का दावा है वो झूठा सच भी आधा है तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं कोरे मन पर महज़ लकीर...
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तुम्हे जिस सच का दावा है वो झूठा सच भी आधा है तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं कोरे मन पर महज़ लकीर...
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जितना खुद में सिमटते गए उतना ही हम घटते गए खुद को ना पहचान सके तो इन आईनों में बँटते गये सीमित पाठ पढ़े जीवन के उनको ही बस रटत...
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वफायें ..जफ़ाएं तय होती है इश्क में सजाएं तय होती हैं पाना खोना हैं जीवन के पहलू खुदा की रजाएं.. तय होती हैं ये माना... के गुन...
बहुत ही लाजवाब ग़ज़ल.हर शेर बेहतरीन
ReplyDeleteहर शेर अलग ही ग़ज़ल कहता है.सलाम
पाना खोना हैं जीवन के पहलू----- वाह लाजवाब।सुन्दर गज़ल के लिये बधाऊ।
ReplyDeletevandu..khayaal bahut acchi hain... 'vajhaayen' koi shabd nahi hota... 'vajhaat' hota hai ....tumne radeef bahut accha liya... kabhi main bhi likhunga is par...
ReplyDeleteबहुत खूब |
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (31/1/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
waakai... khuda ki rajayen tay hoti hain
ReplyDeleteवंदना जी,
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत ग़ज़ल.......वाह....
पोस्ट अगर अच्छी हो तो टिप्पणीयाँ तय होती हैं :-)
anhoni ki wajaheyin tay hain......kya baat hai yaara...too good :)
ReplyDeleteएक से बढकर एक प्रस्तुति...
ReplyDeleteलाजवाब रचना...बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteनीरज
बढ़िया,बढ़िया,बढ़िया,.
ReplyDeletebahut hi pyari kavita hai.. itni achi lagi mujhe ki taarif ke liye lafz hi nhi mil rahe.. love this..
ReplyDeletePls Visit My Blog..
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चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 01- 02- 2011
ReplyDeleteको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
कोई मौसम तय नहीं रहता
ReplyDeleteजिंदगी में हवाएं तय होती हैं
खूबसूरत शेर.....उम्दा ग़ज़ल
उसकी रज़ा के बिन बोल नहीं फूटते....ये सारा इल्म उसकी रज़ा, तोहफा और नवाजिश ही तो है. May god bless you
ReplyDeleteभावपक्छ से मजबूत अभिव्यक्ति के लिये मुबारकबाद,पर जाने क्यूं मैं ये इसके बहर( छद) को समझ नहीं पा रहा हूं।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गजल लिखी है आपने!
ReplyDeleteसब कुछ तय होता है फिर भी व्यक्ति असुरक्षा के दौर से गुज़रते रहता है। इश्किया अहसासों में डूबी एक शबनमी गज़ल के लिए शुक्रिया।
ReplyDeleteबहुत खूब...लाज़वाब गज़ल..
ReplyDeletebahut khub.... aabhar.
ReplyDeleteयही जीवन का खेल है..... बेहतरीन ग़ज़ल.....
ReplyDeleteitna saara wisdom kahan se laati ho ??/?/
ReplyDeleteवंदना जी आपकी इस रचना को चर्चा मंच पर साँझा किया गया है
ReplyDeletehttp://kavita-manch.blogspot.in