गीत, ग़ज़ल, नज्म ..ये सब मेरी साँसों कि डोर, महंगा पड़ेगा बज्म को मेरी खामोशियों का शोर ! --- "वन्दना"
Wednesday, February 2, 2011
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तुम्हे जिस सच का दावा है वो झूठा सच भी आधा है तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं कोरे मन पर महज़ लकीर...
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तुम्हे जिस सच का दावा है वो झूठा सच भी आधा है तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं कोरे मन पर महज़ लकीर...
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जितना खुद में सिमटते गए उतना ही हम घटते गए खुद को ना पहचान सके तो इन आईनों में बँटते गये सीमित पाठ पढ़े जीवन के उनको ही बस रटत...
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वफायें ..जफ़ाएं तय होती है इश्क में सजाएं तय होती हैं पाना खोना हैं जीवन के पहलू खुदा की रजाएं.. तय होती हैं ये माना... के गुन...
'एक लम्बी सी ख़ामोशी
ReplyDeleteसीने में खटकती होगी '
खूबसूरत शेर .....सुन्दर ग़ज़ल
वाह....वाह.....दाद कबूल करें......बहुत खूबसूरत|
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गज़ल...
ReplyDeleteek lambi si khamoshi
ReplyDeleteseene mein khatakti hogi...
my fav...... :)
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteआपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार ०५.०२.२०११ को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
ReplyDeleteचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
सरल शब्दों की सुंदर गज़ल
ReplyDeleteएक शेर है ..................
ReplyDeleteतन्हाइयों मै न ठुन्ड़ो हमे दिल मै समां जायेंगे !
तम्मना है अगर मिलने की तो बंद आँखों मै भी नज़र आयेंगे !
खुबसूरत ग़ज़ल !
सहज-गम्य खूबसूरत गज़ल .....
ReplyDeletebahut sunder.
ReplyDeleteबहुत अच्छी ग़ज़ल है। बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर्।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ...साँस भटकाओ मत ...
ReplyDeleteसुन्दर गज़ल ..
ReplyDeleteसुंदर भावाभिव्यक्ति....
बधाई।
wow....so creative you are :D
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा.
ReplyDeleteग़ज़ल का नकाब ओढ़े नज़्म.
आप की कलम को शुभ कामनाएं.