Saturday, October 11, 2014

मुझसे मेरी प्यास ना छीन



मुझसे मेरी प्यास ना छीन 
जीने का एहसास ना छीन

न हो शामिल सफर में लेकिन
 पंख न छीन परवाज़ ना  छीन

ये उजले अँधेरे हैं जीवन के
तारों की तू सौगात ना  छीन

झूठे - सच्चे ख़ाब दिखा पर 
मुझसे मेरी नींद ना छीन 

मुझको बख्श तू धूप घनेरी
पर मेरे ही  साये ना छीन

~ वंदना 

4 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (13-10-2014) को "स्वप्निल गणित" (चर्चा मंच:1765) (चर्चा मंच:1758) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत सुन्दर एहसास
    आभार

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  3. मुझको बख्श तू धूप घनेरी
    पर मेरे ही साये ना छीन
    बहुत सुन्दर भावों से रचाई है ये रचना....बधाई

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  4. वाह ... छोटे छोटे लाजवाब सादगी भरे शेर ...

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...