Thursday, March 10, 2011

परदेश



मानो परिंदे निकले हैं तिनको कि तलाश में 
माँ के हाथ में मुन्तसिर निवाला छोड़ आए

जो पीढ़ियों का हमें सदा वास्ता देता रहा  
उसी घर पे हाँ हम   ताला छोड़ आए

चलते वक्त दादी कि तस्वीर याद रही 
मगर अफ़सोस वो बासी माला छोड़ आए 

उन  आँखों के उजाले हमारे साथ चलते हैं 
चश्मे के पीछे जिनमे हम जाला छोड़ आए

वो लाठी उन अंधेरो को रास्ता दिखाती तो होगी 
जीवन का जिनमे बेशकीमती उजाला छोड़ आए

 बेगाने से रिश्तो में अब यहाँ वफ़ा ढूंढ रहे हैं 
हम कुछ अपनों को वहां बिलखता छोड़ आए 



वन्दना 

19 comments:

  1. priya vandana ji
    sadar namskar ,
    kya bat hai ! bahut marmik chitran ,mamsprshi rachana har taraf jhankane ko mazboor karati huyi
    aatm nirikshan karti huyi samvedana ke liye sadhuvad.

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  2. जो पीढिइयों का हमे वास्ता देता---- पूराएए रचना ही बहुत अच्छी है लेकिन ये पाँक्तियाँ दिल को छू गयी। शुभकामनायें।

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  3. Laga ki Munawwar Rana sa'ab ko padh rahe hai....Umda :-)

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  4. 'जो पीढ़ियों का हमें सदा वास्ता देता रहा

    उसी घर पे हाँ हम ताला छोड़ आये हैं '

    बेहतरीन शेर

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  5. चित्र और भाव दोनों अच्छे हैं| धन्यवाद|

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  6. मन को भावुक कर देने वाली गज़ल ..बहुत सुन्दर

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  7. बहुत सुंदर लिखा है -पढ़कर ही ह्रदय में तीस उठ रही है -
    बहुत अपनों की याद दिला दी ...!

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  8. बेगानों से रिश्तों में वफ़ा ढूंढते हैं ...
    अपनों से छले जाने का दर्द असहनीय जो होता है ..
    पीछे छूट गए घर और उसके वासिंदों की घनीभूत यादें !
    बेहतरीन !

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  9. बहुत बहुत शुक्रिया आप सभी का इस हौंसला अफजाई के लिए ..:)

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  10. shuru ki 6 panktiyan to bahut hi kamaal ki hain ..

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  11. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 15 -03 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.uchcharan.com/

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  12. जीवन के यथार्थ एवं प्रवासियों की विडम्बना तथा पीड़ा को मुखरित करती बेमिसाल रचना ! बहुत सुन्दर ! बधाई एवं शुभकामनायें !

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  13. बहुत ही बढ़िया लिखा है आपने.
    बहुत ही मर्मस्पर्शी.
    सलाम.

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  14. बहुत कुछ पीछे छूट जाता है -जिसकी यादें ही शेष रह जाती हैं !

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  15. दादी की तस्वीर और बासी माला.........
    वाह क्या खूबसूरत ख़याल और क्या कहन.......बधाई|

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  16. मन के भाव परदेस में भी किस तरह अपनों की याद दिलाते हैं .....आपने जीवन की इस सच्चाई को सुन्दरता से पेश किया है ...आपका आभार

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  17. "आकाश कुमार" की तरफ से आप को तथा आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामना. यहाँ भी आयें, यदि हमारा प्रयास आपको पसंद आये तो फालोवर अवश्य बने .साथ ही अपने सुझावों से हमें अवगत भी कराएँ .
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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...