जीने की तलब मर मर के देख ली
हाँ हमने मोहब्बत कर के देख ली
जो चाहा जिंदगी से ,मिला ही नही
हमने साँसे गिरवी धरके देख ली
एक चेहरे में छुपे हैं चेहरे कितने
एक सूरत हमने पढके के देख ली
एक सूरत हमने पढके के देख ली
लहरों को नाज़ था जिसपे बहुत
वो गहराई हमने उतर के देख ली
मुझे जिंदगी के इल्जाम डराते हैं
बेगुनाही भी 'नजर' कर के देख ली !
'वन्दना'
छोटी बहर की बहुत ही शानदार गजल लिखी है आपने!
ReplyDeleteबहुत बेईमान अहसास होते हैं ये मोहब्बत के..
ReplyDeleteसुंदर नज़्म वंदना जी.. :)
चलिए यह काम भी हो गया .. :):) बहुत खूबसूरत गज़ल
ReplyDeleteसच कहा…………यही है ज़िन्दगी की दास्तान्।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गज़ल..हरेक शेर अंतस को छू जाता है..
ReplyDeleteoho.... kitni vaddi vaddi cheeze try ki tumne.... Jo chaha zindgi se mila hi nahi ...good one !
ReplyDeleteबहुत ही शानदार गजल लिखी है आपने| धन्यवाद|
ReplyDeletebahut hi sundar gazal hai....
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आप सभी का ...:):)
ReplyDeleteबहुत सुंदर गज़ल ..... जीने की तलब मर मर के देख ली
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