क्या जाने क्यूं इस तरह मूह मोड़ने लगा कोई
जैसे बिलखते बच्चे को अकेला छोड़ने लगा कोई
खुद को बहलाने कि वो अपनी तमाम कोशिशे
जैसे टूटे हुए एक खिलौने को जोड़ने लगा कोई
वो हर जज़्बात जिसकी जड़े रगों तक फैली हैं
जैसे रूह से एक एक सब किरोदने लगा कोई
हंसी चेहरे पे गुलाब सी मानो उधार थी उसका
उस फूल कि हर पंखुड़ी अब नोचने लगा कोई
जिंदगी से ऐसा भी ... कोई वादा तो नहीं था
फिर भी जीने के लिए कफ़न ओढने लगा कोई
dil ko chhuti rachna
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर शब्द रचना ।
ReplyDeleteहंसी चेहरे पे ग़ुलाब सी मानो उधार थी उसकी
ReplyDeleteउस फूल की हर पंखुड़ी नोचने लगा कोई.
हर पंक्ति लाज़वाब ......अनुभूतियों की श्रेष्ठ अभिव्यक्ति.
बढ़िया मखमली गजल!
ReplyDeleteएक-एक शब्द आपने चुन-चुन कर रखा है इसमें!
सुन्दर रचना... बधाई
ReplyDeletewaah! bahut khoob ghazal!
ReplyDeleteबहुत उम्दा.
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा.
दिल को छू रही है.