Saturday, March 26, 2011

टीस







कैसी शिकायत ,
कैसी नाराज़गी 
कौन से  गिले ..
कहाँ के शिकवे ..

काश हमने कुछ कहा होता 
काश  तुमने कुछ सुना होता 

हर टीस मुनासिब* होती..
हर दर्द लाज़मी होता !


[मुनासिब = उचित ]



9 comments:

  1. बहुत खूब ...

    कांश को काश कर लें ..

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  2. बहुत सच कहा है...

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  3. बहुत सुंदर ...आपका आभार इस सार्थक प्रस्तुति के लिए

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  4. wahhh!!!! bohot khoob

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  5. यही टीस है जो मन को मथ जाती है !
    ना तो हमने ही कहा कुछ ना तो तुमने ही सुना
    हज़ारों फ़साने ज़माने में फिर भी
    ना जाने कहाँ से बयां हो गये !

    बहुत सुन्दर प्रस्तुति ! बधाई एवं शुभकामनायें !

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  6. बहुत खूब.
    सलाम.

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  7. bahut khoob..

    har tees laajmi hoti hai, BASHARTE wo dil ki gahraai me gote kha kha kar doob jaye...

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...