जो भी महरबां थे ,वो आज रब से हो गये..
निकले थे सफ़र पे हम खुद को तलाशने
कैसा मुकाम आया कि दूर सब से हो गये ..
रोज कुछ नया सा यूँ लिखा जिंदगी ने
कि सब पुराने सफ़हे बे सबब से हो गये..
ठहरे हुए पानी से कोई दुआ नही मांगी
अपनी इबादतों के सिक्के जब से खो गये ..
सुनकर पुकार उसने मुड़कर भी न देखा
इतने बुरे भी हम न जाने कब से हो गये ...
- वंदना
सुन्दर :)
ReplyDeletedil tak pahunchte ehsaas
ReplyDeletebahut sundar,bhavmayi abhivayakti....
ReplyDeleteवाह ... खूबसूरत गजल
ReplyDeletebehad khubsurat gazal....
ReplyDeletebahut achchhi lagi gazal...
ReplyDeleteवाह ! बहुत ही खूबसूरत गज़ल! हर शेर बेहद खूबसूरत !
ReplyDeleteसुनकर पुकार उसने मुड़कर भी न देखा ,
ReplyDeleteइतने बुरे भी हम न जाने कब से हो गए ।
बहुत सुन्दर गजल ....!
khooburat gazal hui hai
ReplyDeleteyou speak my heart....good one !!
ReplyDelete