Sunday, January 17, 2010

ऐ दुनिया तेरे कितने रंग





सच होता निलाम देखूं ...या झूठ के लगते दाम देखूं
ऐ दुनिया तेरे कितने रंग मैं क्या देखूं क्या न देखू


धर्म पे लगते बाजार देखूं ,संक्रमण सा फैला भ्रस्टाचार देखूं
लहराती फसल देखूं या देश में उगती खरपतवार देखूं.
ऐ दुनिया तेरे कितने रंग मैं क्या देखूं क्या न देखूं


त्यौहारों के सजे पंडाल देखूं, हर गली में मचा हाहाकार देखूं
ललाट पे सजता सिन्दूर देखूं या खून सने हाथ लाल देखूं.
ऐ दुनिया तेरे कितने रंग मैं क्या देखूं क्या न देखूं


नन्हे हाथों में औजार देखूं, गंगन चुम्बी मीनार देखूं
देश का विकास देखूं या भविष्य की ढहती दीवार देखूं
ऐ दुनिया तेरे कितने रंग मैं क्या देखूं क्या न देखूं


बुराई के चक्रव्यू में फसां खुद को अभिमन्यु सा लाचार देखूं .
कोरव सी सेना पर इतराऊं या अंधे की सरकार देखूं
ऐ दुनिया तेरे कितने रंग मैं क्या देखूं क्या न देखूं


सच को होता निलाम देखूं ..या झूठ के लगते दाम देखू
ऐ दुनिया तेरे कितने रंग मैं क्या देखूं क्या न देखूं ......
[vandana & neeraj ]








4 comments:

  1. आज के सामाजिक हालात का यथार्थ चित्रन है ......... बहुत हो अच्छा लिखा है .........

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  2. bhai donon ne milkar jo dekha uska shabd chitra behatareen kheencha hai. badhaai.

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  3. Congrates both of you! Bahut acchi soch...aur khoobsoorati se sajaya hai

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  4. नन्हे हाथों में औजार देखूं, गंगन चुम्बी मीनार देखूं
    देश का विकास देखूं या भविष्य की ढहती दीवार देखूं.....
    excellent work by both of you...hats off for dis..:)

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...