सच होता निलाम देखूं ...या झूठ के लगते दाम देखूं
ऐ दुनिया तेरे कितने रंग मैं क्या देखूं क्या न देखू
धर्म पे लगते बाजार देखूं ,संक्रमण सा फैला भ्रस्टाचार देखूं
लहराती फसल देखूं या देश में उगती खरपतवार देखूं.
ऐ दुनिया तेरे कितने रंग मैं क्या देखूं क्या न देखूं
त्यौहारों के सजे पंडाल देखूं, हर गली में मचा हाहाकार देखूं
ललाट पे सजता सिन्दूर देखूं या खून सने हाथ लाल देखूं.
ऐ दुनिया तेरे कितने रंग मैं क्या देखूं क्या न देखूं
नन्हे हाथों में औजार देखूं, गंगन चुम्बी मीनार देखूं
देश का विकास देखूं या भविष्य की ढहती दीवार देखूं
ऐ दुनिया तेरे कितने रंग मैं क्या देखूं क्या न देखूं
बुराई के चक्रव्यू में फसां खुद को अभिमन्यु सा लाचार देखूं .
कोरव सी सेना पर इतराऊं या अंधे की सरकार देखूं
ऐ दुनिया तेरे कितने रंग मैं क्या देखूं क्या न देखूं
सच को होता निलाम देखूं ..या झूठ के लगते दाम देखू
ऐ दुनिया तेरे कितने रंग मैं क्या देखूं क्या न देखूं ......
[vandana & neeraj ]
आज के सामाजिक हालात का यथार्थ चित्रन है ......... बहुत हो अच्छा लिखा है .........
ReplyDeletebhai donon ne milkar jo dekha uska shabd chitra behatareen kheencha hai. badhaai.
ReplyDeleteCongrates both of you! Bahut acchi soch...aur khoobsoorati se sajaya hai
ReplyDeleteनन्हे हाथों में औजार देखूं, गंगन चुम्बी मीनार देखूं
ReplyDeleteदेश का विकास देखूं या भविष्य की ढहती दीवार देखूं.....
excellent work by both of you...hats off for dis..:)