अक्सर जब ख़ुद पर हस्ती हूँ तो आँख भर आती है ,
लोग मेरे चेहरे की खिलखिलाहट ढूंढते है
जब कभी ख़ुद से शिकायत होती है
तो मेरी पलके सिसकते हुए दिल का साथ नही देती ,
और आँखे बेहया सी खामोश रह जाती है**
जब पापा मेरी नादानियों को हंसकर भुला देते है यूँ ही
तो जाने क्यूं वो छोटी गलतिया भी गुनाह बन जाती है,
अपना ही स्वामित्व सजाये देता है
दिल के कानून से दफाये लग जाती है,
लोग मेरे चेहरे की खिलखिलाहट ढूंढते है
जब कभी ख़ुद से शिकायत होती है
तो मेरी पलके सिसकते हुए दिल का साथ नही देती ,
और आँखे बेहया सी खामोश रह जाती है**
जब पापा मेरी नादानियों को हंसकर भुला देते है यूँ ही
तो जाने क्यूं वो छोटी गलतिया भी गुनाह बन जाती है,
अपना ही स्वामित्व सजाये देता है
दिल के कानून से दफाये लग जाती है,
और जब गुस्से में बडबडाती हुई माँ.. डाट देती है
तो दफाये सब हट जाती है और सजाये माफ़ हो जाती है **
पापा के शख्त प्यार में ..कठोर व्यवहार में..,
अटूट विश्वास में.. ,आशा भरी आंखों के स्नेह अपार में ..
माँ के दुलार में ...सच्चे संस्कार में..,
गुस्से में बहने वाली एक निर्मल सी धार में .. झूठी फटकार में ..
....जब जब ख़ुद को परखती हूँ, तो जिन्दगी निखरती जाती है
निखरती जाती है निखरती जाती है **
तो दफाये सब हट जाती है और सजाये माफ़ हो जाती है **
पापा के शख्त प्यार में ..कठोर व्यवहार में..,
अटूट विश्वास में.. ,आशा भरी आंखों के स्नेह अपार में ..
माँ के दुलार में ...सच्चे संस्कार में..,
गुस्से में बहने वाली एक निर्मल सी धार में .. झूठी फटकार में ..
....जब जब ख़ुद को परखती हूँ, तो जिन्दगी निखरती जाती है
निखरती जाती है निखरती जाती है **
sunder at sunder
ReplyDeleteपापा के शख्त प्यार में ..कठोर व्यवहार में..,
अटूट विश्वास में.. ,आशा भरी आंखों के स्नेह अपार में ..
माँ के दुलार में ...सच्चे संस्कार में..,
गुस्से में बहने वाली एक निर्मल सी धार में .. झूठी फटकार में ..
....जब जब ख़ुद को परखती हूँ, तो जिन्दगी निखरती जाती है
निखरती जाती है निखरती जाती है **
sachchi aur sunder panktiyan.
पापा के शख्त प्यार में ..कठोर व्यवहार में..,
ReplyDeleteअटूट विश्वास में.. ,आशा भरी आंखों के स्नेह अपार में ..
माँ के दुलार में ...सच्चे संस्कार में..,
गुस्से में बहने वाली एक निर्मल सी धार में .. झूठी फटकार में ..
Waaaaahhhh,,.....parents ki daant aur pyaar mein alag hi maza hai.
Poori nazm bahut hi behtareen hai. Tooo gooood.... :)
nice thoughts...well felt composition...
ReplyDeleteYe jo ajeeb si baat hain na Vandana.... bes yahi to khoobsoorat hain zindgi mein.... bahut baar galti karke sochte hain ki daant padni chaiye but nahi padti....... tab khamoshi chubhti hain bahut....lagta hain bahut pyaar se likhi hain ye rachna ..... behad khoobsoorat
ReplyDelete"पापा के शख्त प्यार में ..कठोर व्यवहार में..,
अटूट विश्वास में.. ,आशा भरी आंखों के स्नेह अपार में ..
माँ के दुलार में ...सच्चे संस्कार में..,
गुस्से में बहने वाली एक निर्मल सी धार में .. झूठी फटकार में ..
....जब जब ख़ुद को परखती हूँ, तो जिन्दगी निखरती जाती है
निखरती जाती है निखरती जाती है"
वंदना, वाह-वाह!
ReplyDeleteजब पापा मेरी नादानियों को हंसकर भुला देते है यूँ ही
तो जाने क्यूं वो छोटी गलतिया भी गुनाह बन जाती है,
बहुत प्यारा है आपका अहसास...निर्दोष दोषी लगती हैं...
bahut bahut shukrya aap sab ka saharne ke liye .....thanks lot
ReplyDeleteBahut achchhi rachna hai sneh dular se pagi hui.
ReplyDeleteNavnit Nirav
वंदना
ReplyDelete' जब खुद को परखती हूँ तो निखरती जाती हूँ " इतनी छोटी सी उम्र में यदि ऐसी सोच रखती हैं तो समझो जिंदगी सचमुच निखर जायेगी | बेहद सुंदर अभिव्यक्ति वाली कवितायें | मेरी बधाई स्वीकार करें |
बहुत उम्दा अभिव्यक्ति!! बधाई.
ReplyDelete