ना मैं रुक्मणि थी
ना मैं पार्वती
ना मैं भरोसा चुन सकती थी
ना मैं पार्वती
ना मैं भरोसा चुन सकती थी
ना ही तपस्या
राधा हो जाने की
सारी इच्छाओं को मारकर
जैसे चुनती है कोई लड़की
सीता हो जाना
ठीक उसी तरह
मैंने भी चुनना चाहा
मगर मेरा अहम्
न स्वीकार सका परीक्षाएं
और उनसे हार जाना तोबिलकुल भी नही !
मैंने आसान समझा था
हर रस्म हर रिवाजों से
बगावत कर
मीरा हो जाना
मीरा हो जाना
मगर मेरे पास नही था
वो यकीन जो
जहर के प्यालों को
वो यकीन जो
जहर के प्यालों को
अमरित करता
हर विकल्प को हारकर
मैं बची हूँ वही आम लड़की
जिसके हिस्से में दोराहे नही होते
वह समझोतों की बिसात पर
अंततः खुद को सिर्फ एक औरत
साबित कर पाने तक ही समर्पित है
~ वंदना
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, धन्यबाद।
ReplyDeleteवंदना जी, नारी की सच्चाई प्रस्तुत करती बहुत सुंदर प्रस्तुति...
ReplyDeleteवाह क्या बात है। ''कागज मेरा मीत है.., और कलम मेरी सहेली'' दिल को छू जाने वाली पंक्तियां।
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