ना ठोकर ही नयी है, ना जख्म पुराने हैं
हर हाल में जिंदगी तेरे नाज़ उठाने हैं
सिमटने तो लगें हैं पँख हमारी अना के
आसमां से अपने भी मगर बैर पुराने हैं
लिखी गयी हैं जिन पर तहरीर ऐ वजूद
किताब ए जिंदगी के वो सफ़हे बचाने हैं
ढाला जा रहा है किसी मूक बुत में मुझे
मगर मुझको मेरे सब किरदार चुराने हैं
लिखना है किस्सा आँखों की नमी का
गोया कि इस दिल के दर्द भी छुपाने हैं
~ वंदना
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (19.12.2015) को " समय की मांग युवा बनें चरित्रवान" (चर्चा -2194) पर लिंक की गयी है कृपया पधारे। वहाँ आपका स्वागत है, धन्यबाद।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 18 दिसम्बर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार....
लाजवाब!!
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