Wednesday, December 16, 2015

ग़ज़ल



ना ठोकर ही नयी है, ना जख्म पुराने हैं 
हर  हाल में  जिंदगी तेरे  नाज़ उठाने हैं

सिमटने तो लगें हैं पँख हमारी अना के  
आसमां से अपने भी मगर बैर पुराने हैं 

लिखी गयी हैं जिन पर तहरीर ऐ वजूद 
किताब ए जिंदगी के वो सफ़हे बचाने हैं 

ढाला जा रहा है किसी मूक बुत में मुझे 
मगर मुझको मेरे सब किरदार चुराने हैं 

लिखना है किस्सा आँखों की नमी का 
गोया  कि इस दिल के दर्द भी छुपाने हैं 

~ वंदना 

4 comments:

  1. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (19.12.2015) को " समय की मांग युवा बनें चरित्रवान" (चर्चा -2194) पर लिंक की गयी है कृपया पधारे। वहाँ आपका स्वागत है, धन्यबाद।

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 18 दिसम्बर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  3. सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार....

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  4. लाजवाब!!

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...