- 1.
ये तो कोई बात नहीं ..
कुछ बेसबब बेबात नहीं ,
खैर छोडो कोई बात नहीं !
2.
गर डूब गए होते तो पार ही थे..
न डूबते तो फिर इस पार ही थे ,
हमें तो डूबने कि कशमकश ले डूबी !
3.
जमीं को जब तर कर देतीं हैं
बड़ी ही मुश्किल कर देती हैं
कुछ बे मौसम कि बरसातें ..
4.
एक सीले सफ़हे पर बिखरे हुए से कुछ लम्हे..
मूक लफ्जों से गुंथी एक टूटी हुई आखर माला,
ये सब समेटूं सकूँ तो शायद कोई नज्म हो !
5
बड़ी अजीब हैं ये राह ए जिंदगी..
तुम्हे आकाश चहिये मुझे जमीं,
मंजिले जुदा होकर भी जुदा नहीं !
6.
मेरी दहलती हुई जमीं ..
गिरती संभालती साँसे ,
तुम ठीक तो हो ???
गिरती संभालती साँसे ,
तुम ठीक तो हो ???
7.
नजरिये का झूठ ,दिल के वहम ,ये एक तरफ़ा तलब
मुझे नहीं मालूम मोहब्बत किसको कहते हैं ,
मगर खुदखुशी तो शायद इसी को कहते हैं !
ek se badh kar ek........
ReplyDelete8 vi kuch jayad pasand aai.
हमारी समझ के हिसाब से चौथी और छठी रचना को छोड़ दे तो बाकी को हाइकू नहीं कहा जा सकता, जैसे सिर्फ मीटर में होने से तुकबंदी ग़ज़ल नहीं हो जाती वैसे ही हाइकू में भी एक भाव की गहराई होनी चाहिए. आखरी वाली तो बिलकुल ही जोर जबरदस्ती लगी ...
ReplyDeleteबाकी प्रयास अच्छा है, जारी रखिये ....
सुन्दर प्रस्तुति भावो की।
ReplyDeleteखूबसूरत त्रिवेणियाँ ...
ReplyDeleteमुझे दूसरी वाली बहुत अच्छी लगी ... वैसे सभी कुछ न कुछ कहती हुयी लगीं ...
ReplyDeletewaise to all are good but my favourite 6 and 7 :)
ReplyDeleteवंदना जी,
ReplyDeleteवाह...वाह.....बेहतरीन कलाम है....मैं तो मुरीद हो गया आपका......सुभानाल्लाह.....कम से कम मेरा आना तो आपकी हर पोस्ट पर तय है |
just read your trivenies, Love 6th and 7th
ReplyDeleteवन्दना जी ! हवा को नहीं मालूम कोई व्याकरण ......नहीं ली उसने संगीत की तालीम ......पर ...जब अपनी मस्ती में होती है वह ......तो गीत गाती है ........लहरों ने नहीं ली नृत्य की तालीम .....पर मुझे अच्छा लगता है उनका नृत्य ..........अन्दर से जो उमड़ता है ...उसी को गीत कहता हूँ मैं ........उसी को नृत्य कहता हूँ मैं.
ReplyDeleteआप लिखती रहिये ........बस शर्त इतनी ही है कि सब कुछ अन्दर से उमड़ा हुआ होना चाहिए. ....और यह मुझे दिखाई दिया है आपके लेखन में . शुभम करोति कल्याणम.
खूबसूरत त्रिवेणियाँ! पहली और तीसरी तो बहुत शानदार हैं!
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