जो कबूला भी नहीं ..जुठ्लाया भी नहीं
जो जताया भी नहीं और छुपाया भी नहीं..
उस प्यार कि कोई ..इन्तहा तो न थी
वो लबो पे मगर कभी आया भी नहीं..
तकती थी शाम ए तन्हाई रास्ता जिसका
वो आया भी नहीं .हमने बुलाया भी नहीं..
मैं ही पागल जाने किस दर्द में जीता रहा,
उस रहनुमा ने कभी दिल दुखाया भी नही..
मुनासिब तो न था ये कर्ब ऐ हिज्र* लेकिन,
फुर्सत से कोई लम्हा मगर बिताया भी नहीं
टूटते देखें हैं रोज रातों में ,तारे गगन के,
माँगकर दुआ दिल को बहलाया भी नहीं..
अजब खामोश सा सफर है ये इश्क यारों,
मंजिलें छूट गयीं और सबात* आया भी नहीं..
सबात = ठहराव
बहुत खूबसूरत गज़ल ...
ReplyDeleteसच कह रही हैं ये सफ़र ना जाने कैसा है और कहाँ जाकर ठहरेगा…………दिल को छू गयी।
ReplyDeleteमैं ही पागल किस दर्द में जीता रहा|
ReplyDeleteउस रहनुमा ने तो कभी दिल दुखाया भी नहीं|
बेहतरीन शे'र वंदना जी| बधाई|
दिनांक ३ से ५ जनवरी के दरम्यान ओबिओ पर तीसरे महाएवेंट का आयोजन किया गया है| आप मित्र मंडली सहित पधार कर साहित्य रस पॅयन कीजिए| ज़्यादा जानकारी के लिए लिंक्स दे रहा हूँ:-
upcoming event
http://www.openbooksonline.com/forum/topics/obo-3
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http://www.openbooksonline.com/forum/topics/obo-2-closed-now-1
http://www.openbooksonline.com/forum/topics/obo-1-now-close
kasam se! agar kisi 3rd ko padhwaya jaaye .....wo fo kisi hi-fi type shayar ka naam lega.... Log ham jaiso ko underestimate kyon karte hain ? :-)
ReplyDeletenice
ReplyDeletenice
ReplyDeleteसुभानालाह........दाद कबूल करें|
ReplyDeleteआपको भी नया साल बहुत-बहुत मुबारक हो...
ReplyDeleteumda gazal.
ReplyDeleteWaah....Waah....Waah...
ReplyDeleteउस प्यार की तो कोई इंतिहा नहीं थी ...मगर कभी लबों पर आया ही नहीं ..
ReplyDeleteअजब खामोश सा सफ़र है ...बस सफ़र ही सफ़र है ...कोई मंजिल नहीं ...
खूबसूरत रचना !