आज मैं खुद से रूठ जाऊं
तो मुझको मनाये कोई
मैं फूटकर रोना चाहती हूँ
काँधे से अपने लगाये कोई ...
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ये तन्हाई मुझको
अपनी गिरफ्त में ले बैठी
मुझे ...इस कैद से ....छुडाये कोई .....
मैं आज बिलखूँ..पैर पटक कर
रोते किसी जिद्दी बच्चे कि तरह
मुझे बांहों में लेके .
दिलासों से ही बहलाए कोई ...
खुद को समेट कर बाँधा है
हिम्मत कि एक नाजुक सी डोर से
डर लगता है टूट ना जाये
शायद मुझे समेट ना पाए कोई
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घेर लेते है जाने क्यूं बेवजह कि उदासियो के घेरे
कोई पूछे आँखों कि नमी का कारन ..
गिरते अश्क जमी से उठाये कोई ...
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जी करता है आज इन कमजोर लम्हों को
एक बार फिर अपने पागलपन से जीत लूं ...
...
मैं हंस लूं आज किसी पागल कि तरह
मुझे देख कर यूँ ही मुस्कुराये कोई ..
sunder abhivyakti.
ReplyDelete...बहुत सुन्दर,प्रसंशनीय !!!
ReplyDeleteबहुत सच लिखा है .... कभी कभी मन उदास हो जाता है और सच में ये लगता है की कोई उसको भींच ले ..... और बस किसी का कंधा यूँ ही मिलता रहे .... बहुत अच्छी रचना है .......
ReplyDeletebahut bahut shukriya aap sabhi ka yahan tak aane k liye ...:)
ReplyDeletethanks a lot
wow.........bahut sahi tashan ja raha hai...bahut sunder ....keep it up
ReplyDeleteso nice creation... kafi sunder likha aapne... dil ko chu gayi rachna...
ReplyDeleteawesome.....
ReplyDeleteArre kyon ro rahi ho??? hehehhe
ReplyDeletebahut hi khoobsurat hai nazm.... :)
इस कैद से ....छुडाये कोई .....
ReplyDeleteनाजुक सी कविता ...दिल को छू जाने वाली...हसरतों का खूबसूरत इजहार....