बेख्याली में एक खूबसूरत सा ख्याल बनके आ जाता है
कोई अनदेखा अनजाना अक्सर ख्वाबो में आ जाता है..
मैं जाने क्यूं आईने में खुद से बिछड़ जाया करती हूँ
वो मेरी ....उलझी हुई.... लटें ........सुलझा जाता है
कभी मिलता है ..सपनो में किसी रम्ज -शिनाश कि तरह .
जाने..... किस तरह ..बिलखते दिल को... सैलाह जाता है
टूटता है जब जब कोई तारा फलक के जहाँ में
वो इबादत कि तरह दुआओं में आ जाता है ..
पलकों पे झिलमिलाता है यूँ तो आसमां के सितारों कि तरह ..
अक्सर तन्हा रातों में ..चाँद बनके आ जाता है ...
मेरी साँसों में भी बस्ता है कोई एहसास ए तरन्नुम कि तरह .
मुझे यकीं तब होता है जब गीत बनके वो लबो पे आ जाता है ..
महमां है... मेरी ..बज्म ए तन्हाई का....... वो
पाकर मुझे तन्हा पलकों में अश्क बनके छलक जाता है
यकीं मानों कोशिशे लाख किया करती हूँ मैं छुपाने कि
मगर ए लेखनी तेरे दम से हर राज जुबाँ पे आ जाता है ...
हाँ इतनी सी शरारत मैं ए गजल तेरे साथ कर ही लिया करती हूँ
गढ़ती हूँ अफसाना सब्दो से खेलके कुछ है के जो दिल में रह जाता है..
hats off dear....i too share similar feelings....
ReplyDeleteबहुत कोमल रचना!
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कह रहीं बालियाँ गेहूँ की - "वसंत फिर आता है - मेरे लिए,
नवसुर में कोयल गाता है - मीठा-मीठा-मीठा! "
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संपादक : सरस पायस
wow.....Ultimate superb ...Fantabulous......aur words and hai.....gazab kar diya dear
ReplyDeleteमहमां है... मेरी ..बज्म ए तन्हाई का....... वो
ReplyDeleteपाकर मुझे तन्हा पलकों में अश्क बनके छलक जाता है
तन्हाई में अश्क भी साथ देते हैं ... की तो है जो साथ रहता है ... अच्छा लिखा .....
तुझसे जुस्तजू कोई हम हरगिज ना करते
ReplyDeleteतुझे ए शितमगर जो हम पहचान जाते..
bahut badhia likha hai.